पहली बारिश और धार्मिक मुद्दा



सुबह से झिमिर-झिमिर वाली बारिश अब जोर पकड़ ली है। बगल वाले रूम का एक लड़का गंजी खोल कर छत पे नहाने जा रहा है। एक रूम का लड़का दूसरे रूम के लड़के से कह रहा है 

''भैया चला न ऊपरे...नहावल जाई'' 

मुड़ी धुनते हुए दूसरे रूम का लड़का कहता है ''नहीं भैया हम न जाएंगे नहाने...हमको चार दिन से बोखार लगल है...देखिये परसों ही PMCH के डॉक्टर से दिखवाये हैं...साला एक पॉलीथिन दवाई फाँकने के लिए दे दिया है''

तभी एक खूब पढ़ाकू लड़का रूम से बाहर निकलता है और व्यंग मारते हुए कहता है ''जाइयेगा भी मत...नहीं तो आपके देहिया पे ही एसिड रेन हो जाएगा...पहला बारिश है इम्यून सिस्टम को झाँप पोत के रखिये...नहीं तो अबकी बेर AIIMS जाना पड़ेगा''

उधर गलियारा में एक सुसुरमुँह लड़का पानी का फुवारा लेते हुए अपनी एंजेल प्रिया से पूछ रहा है ''देखो न लॉज़ का लड़का सब ऊपर छत पे नहा रहा है...तुम बोलो तो हम भी तुम्हारे नाम पे नहा आये..?

लड़की सचेत करते हुए कह रही है ''नहीं नहीं...उ सब गधा है भींगने दीजिए न उन्हें...अगली बारिश में आप नहा लीजिएगा और मन हुआ तो हम भी नहा लेंगे आपके प्यार में''

''नहीं प्रिया...पिछली बार भी तुम यही कही थी कि अगले बार नहा लीजिएगा...इस बार वादा करो कि अगला बेर हमको नहीं रोकोगी''

''ठीक है बाबा...प्रॉमिस अगली बार नहीं रोकूंगी''

वैसे भी इस मौसम में अपनी प्रेमिकाओं से एक-दो वादा नहीं किये/करवाये तो क्या किये? 

तभी ऊपर से एक हिन्दू लड़का आवाज लगाता है ''ए मसुदन भाई तनिक हमरे रूमवा से साबुन लेते आइये न मरदे..लगले हाथ देह का मैल भी छोड़ा लेंगे''

मसुदन भाई साबुन ले कर ऊपर जा रहे हैं, हमको देखते हुए कह रहे हैं...आर्यन भाई चलिये न आप भी...नहाया जाए। मैं भी सोचता हूँ एक मुस्लिम लड़का एक हिन्दू लड़के को इतना सुहाना मौसम में इस प्रेम भाव से नेवता दे रहा है...मना तो नहीं करना चाहिए। वैसे भी इस देश में धर्म की लड़ाई पानीपत के युद्ध से कम थोड़े ही है। अगले ही पल मैं मसुदन भाई के साथ होता हूँ।

सारे मित्र अब छत पे हैं, बगल वाले गर्ल्स होस्टल के छत पे लड़कियों का एक झुंड भी नजर आने लगा है। नहाने का मजा दुगुना हो चला है। एक ही साबुन से सारे लोग नहा रहे हैं। अब बारिश और भी तेज हो गयी है। एक एक बूंद का चोट हमारा दिमाग ग्रहण कर रहा है।

तभी नीचे से कोई लड़का बूफर में गाना बजा दिया है ''अभी जिंदा हूँ तो जी लेने दो...जी लेने दो...भरी बरसात में पी लेने दो''

सारे लड़के अब गाने का स्टेप फॉलो कर रहे हैं, मतलब ऐसा कि नसरूदीन शाह देखे ले तो लजा के दारू पीना छोड़ दे। इधर उज्ज्वल भाई तो गज्जब कर रखे हैं मतलब दो मिनट और नाच देते तो लड़कियाँ इनपे मर-मिटने को तैयार हो जाती। 

अफसोस अब बिजली चली गयी है। गाने बंद हो चुके हैं। बारिश भी अब धीमी पड़ आयी है। पर इस बारिश में जो सबसे अच्छी और खूबसूरत बात लगी कि हम सब धर्म के नाम पर नहीं लड़े। हम हिन्दू भाइयों ने मुस्लिम के हाथ का साबुन लगाया। और क्या प्रेम, आत्मीयता और स्नेह से लगाया। अगर पहली बारिश जीवन में इतनी आत्मीयता ला सकती है, 65 किलो के देह को एक सक्रिय इंसान बना सकती है तो जीवन में ऐसी बारिशें होते रहनी चाहिए।

जय हो।

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