चंदुवा और डिम्पीया की कहानी


पनरह साल पहिले की कहानी है। आलसपन तो जैसे चंदुवा के देह में कूट-कूट के भरल था पर जब बात डिम्पीया के आ जाए तो आलसपन से 20 कोस दूरी बना के रखता था...और चुपके से डिम्पीया के करेजा के दरवाजा खोल के जा बैठता था। 

डिम्पीया भी अपन दिल में बैठे के परमिशन दे चुकी थी...देती भी काहे नहीं डिम्पीया भी चंदुवा को भर बाल्टी पसन्न जो करती थी।

गरमी बीता...बरसात भी बीता...अब बारी जाड़ा का था...अभी ठण्ड कुछ ज्यादा नहीं पड़ रहा था पर पछुआ हवा चले ला शुरू हो गया था और हल्का हल्का ठंडी भी महसूस होवे लगा था। दिन भी छोट होवे लगा था और सूर्य भगवान भी अपन समय से पहिलिये सन्झौती दिखा जाते थे। 

चंदुवा और डिम्पीया दोनों पड़ोसी थे...पडोसी होने के कारण दोनों के घरवा में खूब अपनापन था...मानो जैसे इ दोनों घर मिलकर एक परिवार हो। साग, सब्जी तो उन दिनों कोई खरीदता ही नहीं था...अगर डिम्पीया के घरे परोर और बैंगन टूटता था... तो चंदुवा के घरे भी परोर और बैंगन ले के डिम्पीया हाजिर हो जाती थी। ठीक उसी तरह...किसी दिन डिम्पीया के घरे दही जमावे ले जोरन नहीं बचता था, तो एक आवाज में ही चंदुवा डिम्पीया को छते पे से जोरन दे देता था...और बिहाने होते ही सबसे पहले डिम्पीया के माई से पूछ बैठता था कि ''चची दहिया जमलो की ना''

चाची भी अँगना में झाड़ू लगाते हुए चंदुवा का जवाब हाँ में दे जाती थी।

इधर चंदुवा के माई बाक्स में से सूटर, बन्दर टोपी और रजाई निकाल रही थी की चंदुवा स्कूल से घर पंहुचा।

माई माई बड़ी ठंडा हाउ बहरे....!!

हाँ चंदू देख न जाड़ा के सब कपड़ा आज निकाल दे रहलिऔ। पिछले साल ही चंदुवा के नाना जी....चंदुवा के लिए बंगाल से जैकेट खरीद के लाये थे...उ सब निकल रहा रहा है। इधर चंदुवा मने मने खूब खुश हो रहा है की अब तो डिम्पीया के सामने जैकेट पहिन के जायेंगे...और उधर डिम्पीया के लिए भी इस बार जाड़ा का नया कपडा खरीदने की तैयारी हो रही है। 

कॉपी के बाहने आके डिम्पीया भी चंदुवा से पूछ गयी। सुनो न चंदू माई हमरे लिए जैकिट ख़रीदे बाजार जा रही है,....तुम्ही बताओ ना कौन रंग के जैकेट खरीदें....?

चंदुवा को ख्याल आया कि हमार जैकेट तो बुल्लू रंग का है,...तो काहे नहीं,....डिम्पीयो के बुल्लू रंग का खरीदवा दे एकदम सूट करेगा ओकर चमेली जइसन चेहरा पर...!!

डिम्पीया को जवाब मिल गई उ ख़ुशी ख़ुशी आपन माई के संगे बड़का बाजार चल दी।

और इधर चंदुवा भी मने मने खूब खुश है...नींद नहीं आया बेचारा को रात भर...इहे सोचते रह गया कि डिम्पीया बुल्लू बुल्लू जैकेट में कइसन दिखेगी।

रेखा नियुत दिखेगी की माधुरी दीक्षित नियुत दिखेगी।

कुकड़ू.....कु,........कुकड़ू,....कु की आवाज आई

सुबह हुआ...और आज चंदुवा सुबहे सुबहे नहा धुआ के फिट है। बाहर निकल कर देखा...तो गाँव धुइयाँ और कुहासा में.... कॉप रहा था। कहीं कहीं बड़का बुजुर्ग लोग गोइठा, लकड़ी, रबर की टायर और कुछ प्लास्टिक बटोर के...आग जलाकर...उसके चारो और गोला बनाकर बैठे खुद को कनकनी से राहत देने के लिए अपन अपन देह में गर्मी भर रहे थे।

ना जाने केतना घर में चौवनप्राश के डिब्बा भी ख़रीदा गया था।

माई भी उधर दूध की चाय सस्पेन में खौला रही है। चाय की सोंधी सोंधी खुशबू चंदुवा को फिर से डिम्पीया के याद में ला डुबोता था। अंदर टिफिन में से माई ने रात की बनी रोटी लपेटी कपड़े में से बाहर निकाली और चंदुवा को दे दी।

चंदुवा भी गरम चाय में वही बासी रोटी डुबो डुबो सुबह का नास्ता करने लगा। स्कूल का वक़्त भी होने ही वाला था...तब तक डिम्पीया चंदू चंदू की आवाज देते हुए इसके घरे आ गयी। स्कूल की लोहे वाली घंटी बजने से पहलिये चंदुवा के दिल के घंटी, गिटार,वाकमैन,हरमुनियम सब एक्के साथ बजने लगा...बजता भी काहे नहीं आज तो माधुरी दीक्षित भी डिम्पीया के सामने जीरो बट्टे सन्नाटा लग रही थी। 

अब बेचारा चंदुवा डिम्पीया के लिए कवन शायरी सुनावे इसी सोच में उ डूबल है।

फिर दोनों अपन अपन बस्ता उठा के स्कूल की और चल दिया...आज दोनों बुल्लू बुल्लू में खूब खुश था मानो जैसे ''जब तक है जान'' वाली कटरीना और शरुख़वा हो। दोनों अपन प्यार के गंगा में डुबकी लगाए कदम बढ़ा रहा था...और उधर स्कूल में प्रार्थना शुरू होवल था और इ दोनों के पहुंचते-पहुंचते समाप्त भी हो चुका था। 

देर से पहुचने के कारण धोती वाले मास्टर जी चंदुवा को वहीं मुर्गा बना दिए और प्यार भरे शब्दों में डाँटकर डिम्पीया को क्लास के अंदर भेज दिए। चंदुवा को मुर्गा बनल देख डिम्पीया मास्टर जी को मन्ने मन्ने 20-30 गाली बक गयी।

खैर उस समय सबका क्लास अलग-अलग न होकर एक्के होता था एक ही रूम में चौथा से ले के सातवाँ तक के बच्चों को दरी पर बिठाया जाता था....और उस समय क्लास में सीट लुटे के फैशन था जो सबसे पहले आएगा...उ सबसे पीछे बैठता था मल्लब कि आगे बैठने से सबको डर लगता था। कई बार तो पीछे बैठने के लिए फैंटम फैटी भी हो जाता था। फैंटम फैटी इसीलिए कि आगे वाला लईकन के देह पर खजूर के डंटा टूटे के उम्मीद ज्यादा रहता था ऐसा लइकन सब सोचता था पर गुरूजी भी कम नहीं थे उ पिछुए से सोटना शुरू करते थे काहे कि उनको पता होता था की शोर कहाँ से होता है...उसी बीच कोई सीधा-सादा और शांत लड़का भी कुटा जाता था और सब अपन-अपन देह रगड़ने लगता था। 

किसी के मुँह से अगे मैय्या...किसी के मुँह से बाप रे बाप....तो किसी के मुँह से अब नय सरजी का आवाज निकलता था इसी कनफ्यूजन में चंदुवा और डिम्पीया बीचे में बैठता था... पर आज लेट पहुंचने के कारण आगे सीट मिला था। दोनों के करेजा तो सुख के पहलिये कागज हो गया था,.... इ सोच में कि पता नहीं कब हमारे ऊपर बजड़ जाए भागवान भी ना जानत हैं।

छुट्टी की घंटी बजी और दोनों अपन दिल के बात करते करते घर पहुँचा। चंदुवा जैसे ही दुआरी पर पंहुचा उसका नजर नया नया चप्पल पर पड़ा चंदुवा तो इ सब में जुगाड़ू हइये था। नया चप्पल देख कर पहलिये अंदाजा लगा लेता था कि घर में आज जरूर कौनो मेहमान आये हैं...रसगुल्ला खाय को मिलेगा...अंदर देखा तो नाना-नानी और मामा जी आये हुए थे।

सबको पाउ लगा और आशीर्वाद भी खूब पाया...साथ में पनरह रुपया भी पाँच-पाँच रूपया तीनों दिए थे। चंदुवा के तो खुशी के ठिकाना ही नहीं रहा...माई से पूछने लगा कि माई इ पैसा गोलकी के डिब्बा में रखें कि जीरा के डिब्बा में....?

मुँह में रसगुल्ला खिलाते हुए माई ओकर हाथ में से पैसा ली और अपन साड़ी के कोर में बाँध ली। एक टिफ़िन में अलग से रसगुल्ला निकाला गया डिम्पीया के घर जाने के लिए। साँझ का वक़्त हो गया था चंदुवा रसगुल्ला वाला टिफ़िन ले के डिम्पीया के घर पहुँच गया...पर डिम्पीया पश्चिम मुँह खड़ी हो कर साँझ दिखा रही थी...तो चची से ही कहा...
चची चची हमर नाना ऐल्थुन हें ओकरे मिठाई हकों।

पर चंदुवा के नजर तो डिम्पीया के खोजे में लगल था,....अचानक इसका नजर डिम्पीया के हाथ पर सूती से बाँधला कपड़ा पे गया।

इ का हुआ डिम्पीया....? 

कुछ नहीं चंदू,....बस लालटेन के शीशा साफ़ करे में थोडा सा कट गया है। चंदुवा के तो अइसन महसूस हो रहा था जैसे हाथ नहीं इसका दिल कट गया हो। तब तक चाची चंदुवा के घरे पहुँच चुकी थी उनके नाना नानी से मिलने के लिए....और इधर झट से डिम्पीया चंदुवा के मुँह पर अँगुली रख दी,....जो बोले सो बोले अबकी बार फिर कभी इ बात को दुहराना मत समझे।

हमरी दिल कभी कट नही सकती,....सूरज भगवान नियुत इ हमेशा जिन्दा रहेगा। देख लेना हाँ...!!

ठीक है पर अपना ध्यान रखा करो पिछली बार भी तुम कद्दू के पकौड़ी छाने में अपना हाथ जला ली थी और आज हाथ काट ली हो,.... इसी तरह करती रहोगी तो हमहूँ किसी दिन चिमनी के पक्कल अईटा से आपन करेजा फोड़ लेंगे देख लेना। हाँ,....!!

इतना कहते हुए चंदुवा गुस्से में दुआरी से बाहर आ गया,...और उसके पीछे पीछे डिम्पीया...उसको मनाने के लिए।



भाग:-2 में पढ़िए चंदुवा और डिम्पीया के रूठने मनाने का सिलसिला और चंदुवा के घर खरिदाये नए ट्रेक्टर की कहानी,....नए ड्राईवर की खोज और नई कहानी।


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