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Faiz ahmad faiz poem |
फ़ैज़ अहमद साहब की कविता हम देखेंगे का अवधी अनुवाद शशांक भारतीय की कलम से। फ़ैज़ साहब माज़रत...
हमहूँ देखब!
ई पक्का है हमहूँ देखब,
ऊ दिन जेकर हरबद्दी है,
जौन अपने करम मा लिक्खा है,
हमहूँ देखब,
जब जुलुम जोर कै पीरा सब,
रूई के तिना छितरा जाइ,
हम दुखियारन के गोड़ तरे,
धरती हिलिहैं डगमग डगमग,
औ सेठ शाह के खोपड़ी पर,
बिजुरी कड़के चकमक चकमक,
हमहूँ देखब
ई पक्का है हमहूँ देखब
जब हमरे तोहरे पीठी से
ई नकली दैव पटका जइहैं
अउ हम दुरियावा गयन लोग,
पलँगा कुर्सिप बैठा जइहै
हमहूँ देखब
ई पक्का है हमहूँ देखब,
सब मुकुट मउर उतरावा जे,
सब सिंहासन खाली होए,
बम भोले कै जयकारा उठे,
जे कन कन मइहाँ बिराजत हैं,
जे देखत और देखावत हैं
सभे अपने करम कै मालिक बने,
तुहूँ बनिहौ हमहूँ बनबै
अउ राम कै परजा राज करी
तुहूँ करिहौ, हमहूँ करबै...
शशांक भारतीय
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इंक़लाबी शायर फ़ैज़ की मशहूर नज्म हम देखेंगे का मगही अनुवाद। आइए, आनंद लीजिये और मन का दिव्य भाव व्यक्त करें।
हमहूँ देखब!
हम देखबे करब!
ऊ बिहान कि जेकर किरिया बा
जे ग़महेल बबा के लीखल बा
हमहूँ देखब!
जब जुलुम-जोर के सब पहाड़
रूई जइसन छितरा जाई
सब दुखिया जन के लात तरे
ई धरती डगमग करे लागी
आउ जब्बर के गोड़ पर सीधे
बज्जर-बिजुरी गिरे लागी
हमहूँ देखब!
जब कुलदेवता के नाम पर सजल सिंहासन
छितर-बितर हो जाई हो
सब माटी के मूरत जेहि दिन
दुरा पर फेंकल जाई हो
हम दू कउड़ी के लोगन के
मसलन्द प बइठावल जाई हो
सब मउरी, पगड़ी भुइयाँ गिरी
सब सिंहासन हिल जाई हो
बस नाम रही ऊहे कुलदेवता के
जे नइखन तब्बो इहें हथ
जे देखे आउर देखाव हथ
"हमहीं ही कुलदेवता" के डंका बजी
जे तूहूँ बड़अS आउ हमहूँ ही
आउ कुलदेवता के परजा राज करी
जे तूहूँ बड़अS आउ हमहूँ ही
सन्नी शुक्ला
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फ़ैज़ अहमद साहब की कविता हम देखेंगे का मैथिली अनुवाद
देखबे करबै !
एकटा वादा छल सभ स’
अछि बिधिनाक बनायल जे
हमहूँ देखबै!
जुलुमक ई दुष्कर पहाड़
रुइया जेना उड़ि जायत
आ दुखिया जनता के तरबा तर
ई धरती जखन धड़-धड़ धड़कत
सत्ता के मद में चूर जे छथि
हुनका माथा ठनका बजरत
हमहूँ देखबै!
गोसाईं बनल जे बैसल छथि
गरदनियाँ द’ फेकल जयताह
भलमानुष जे सदा उपेक्षित
तोशक पर बैसाओल जयताह
मुकुट हवा में उछलि खसत
आ सिंघासन खंडित होयत
हमहूँ देखबै!
रहि जेतै नाम त’ ओकरे टा
जे सगुण आ निर्गुण दुनू अछि
जे नजरिक संग नजारो अछि
लागत ‘हमहीं ब्रह्म’क जयकारा
जे हमहूँ छी आ अहूँ छी
जनता जनार्दन करत राज
जे हमहूँ छी आ अहूँ छी
हमहूँ देखबै!
देखबे करबै !
अशोक झा
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