एक मजदूर है एक मैं हूँ

Short poem  - युद्ध और मौत

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Hindi Short Poem

मछलियाँ तालाब के बाहर 
आकर धूप नही सेंक सकती

स्त्रियाँ मंगलसूत्र से गला फाँदकर
आत्महत्या नहीं कर सकती

तुम घर से निकल नहीं सकती
मैं तुम्हारा चबूतरा चढ़ नहीं सकता

ऐसी कितनी रेखाएँ हैं
जिन्हें पार करने पर 
या तो युद्ध होगा
या मौत आएगी



Short poem- एक मजदूर है एक मैं हूँ

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Hindi Short Poem

एक मजदूर है
जो तमाम दिन 
पत्थर तोड़ता है
वजन ढोता है
पसीना बहाता है 
और शाम को घर आता है 
तो प्यार करता है

एक मैं हूँ 
तमाम दिन बिस्तर पर पड़ा रहता हूँ 
और रात को भी चिड़चिड़ाता हूँ |

सुखी कौन है 
मैं तो नही हूँ




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