'Mujhme jo ek aurat hai' book by aakanksha priya
आकांक्षा प्रिया विरचित सद्यः-प्रकाशित पुस्तक "मुझमें जो एक औरत है" को यदि कुल एक वाक्य में परिभाषित करना हो, तो मैं इस किताब को "काव्यात्मक संवेदनाओं के जगत में एक सार्थक हस्तक्षेप" की उपमा दूंगा। क्योंकि मूल रूप से ये कवितायें कवयित्री के अनन्य रूप से संवेदनशील ह्रदय में उपजी स्वतःस्फूर्त संवेदनाओं को अपनी विशिष्ट निष्ठापूर्ण अभिव्यक्ति-विन्यास के जरिये पाठकों तक प्रक्षेपित कर पाने की कवायद से उपजी हैं; और युवा कवयित्री का यह हस्तक्षेप निश्चय ही न सिर्फ उल्लेखनीय है, बल्कि निःसंदेह प्रशंसनीय भी है।
आकांक्षा प्रिया विरचित सद्यः-प्रकाशित पुस्तक "मुझमें जो एक औरत है" को यदि कुल एक वाक्य में परिभाषित करना हो, तो मैं इस किताब को "काव्यात्मक संवेदनाओं के जगत में एक सार्थक हस्तक्षेप" की उपमा दूंगा। क्योंकि मूल रूप से ये कवितायें कवयित्री के अनन्य रूप से संवेदनशील ह्रदय में उपजी स्वतःस्फूर्त संवेदनाओं को अपनी विशिष्ट निष्ठापूर्ण अभिव्यक्ति-विन्यास के जरिये पाठकों तक प्रक्षेपित कर पाने की कवायद से उपजी हैं; और युवा कवयित्री का यह हस्तक्षेप निश्चय ही न सिर्फ उल्लेखनीय है, बल्कि निःसंदेह प्रशंसनीय भी है।
मुझमें जो एक औरत है : हिंदी कविता पुस्तक अंश
जाहिरा तौर पर, ये तो हम सब जान ही चुके हैं कि "मुझमें जो एक औरत है" शीर्षकान्तर्गत प्रखर-गूँज प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक युवा कवयित्री आकांक्षा प्रिया की एक-सौ-एक कविताओं का एक सुन्दर-सुसज्जित संकलन है। यहाँ संकलन की कविताओं की एक सर्वथा-यूनिक प्रस्तुति के तल पर यह अत्यंत ही ध्यातव्य होगा कि प्रस्तुत पुस्तक के पठन को और ज्यादा सरस, सुरूचिपूर्ण और सहज-सरल बनाने के उद्देश्य से संग्रह की कूल एक-सौ-एक कविताओं को छः खण्डों में विभक्त कर दिया गया है।
पुस्तक के ये छह खण्ड क्रमानुसार निम्नलिखित शीर्षकों में आते हैं:
1. प्रथम खण्ड: "दर्द के साये में" (जिसके अंतर्गत कवयित्री ने "औरत होने की पीड़ा" को अभिव्यक्त करती कविताओं का चयन किया है)
2. द्वितीय खण्ड: "यह संतप्त समय अपना" (जिसके अंतर्गत कवयित्री के निजी जीवन-दर्शन की काव्यात्मक आख्यायिकाओं का चयन किया गया हैं)
3. तृतीय खण्ड: "किसी बहाने प्यार" (जिसके अंतर्गत प्रेम और रोमानियत की भावाभियक्तिओं में रगी-पगी कविताएं हैं)
4. चतुर्थ खण्ड: "माँ, जो कभी नहीं मरती" (जिसके अंतर्गत कवयित्री ने माँ के ऊपर लिखी अपनी कविताओं को समेटा है)
5. पंचम खण्ड: "अपने चारों ओर" (जिसके अंतर्गत समसामयिक घटनाओं की अभिप्रेरणा से कवयित्री की लेखनी से प्रस्फुटित कविताओं को समेटा गया है)
6. छठा खण्ड: प्रकृति और परिवेश (जिसके अंतर्गत आप पढ़ सकते हैं अपने आस-पास की प्रकृति के अवलोकन व् तत्संबंधित चिंतन से निःसृत भावनाओं के काव्यान्तरण की बानगियाँ)
आइये इसी पुस्तक का कुछ अंश पढ़ते हैं :-
कविता : अपनी प्रेम कहानी ऐसी बन जाए
हे प्रिय! काश हमारी भी ऐसी ही,
प्रेम कहानी बनी रह जाए।
उम्र साठ के बाद भी,
ये साठ-गांठ अपनी,
और मजबूत बन जाए।
मैं तेरी आहट को पहचानूँ,
तु मेरी खामोशी भांप जाए।
तुझे तलब़ लगने से पहले,
कांपती हाथों से चाय लेकर,
तेरे ही सामने आ जाए।
भले कोई और नाम ना रहे याद,
दोनों के लफ़्ज संग 'शानू' कह जाए।
मेरी राह तकने से पहले ही,
तु मेरी नज़रों के सामने आ जाए।
आँखो पर तो चश्मा है तेरे,
मेरी आँखे भी ऐसी ही हो जाए।
धूँधली नजर से कुछ भी देखूँ,
तो बस तेरी ही छवि नजर आए।
कभी-कभी बच्चों-सा प्यार,
तु तब भी मुझको कर जाए।
अपनी कांपती उंगलियों से भी तु,
मेरे झूर्रीदार गालों को सहलाए।
मेरे उन सफेद बालों से भी तु,
मखमली रूई-सा एहसास पाए।
और चंपी करने के बहाने से तु,
हर-बार मेरे बालों को उलझाए।
तब भी मैं ही रूठूँगी तुझसे,
और तु हँसकर मुझे मनाए।
सफेद बालों से निकले मांग को
लाल सिंदूर से तु सजाए।
ये सब करके जब थक जाएँ,
तो दोनों संग-संग थम जाएँ।
मैं चिर निद्रा में सो जाऊँ,
तेरे बाहों में तुझसे पहले,
मेरे बाद फिर तु भी सो जाए।
अपने बच्चों के होठों से भी,
हम आदर्श युगल कहलाएँ।
प्रेम कहानी पर .....
यकीं करने को बच्चे,
हमारी ही डायरी के,
पन्नों को पढ़ पाए।
हे प्रिय! काश हमारी भी ऐसी ही,
प्रेम कहानी बनी रह जाए।
उम्र साठ के बाद भी,
ये साठ-गाँठ अपनी,
और भी मजबूत बन जाए।
आकांक्षा प्रिया
कविता : माँ तु आत्मा है मेरी
माँ तु आत्मा है मेरी,
मैं आत्मजा हूँ तेरी।
काश! कि ऐसा हो जाता,
मैं माँ बन जाती तेरी!
माँ-बेटी का वो रिश्ता,
फिर से जीना है मुझको।
अपनी शरारतें वो मासुमियत,
माँ तुझमें देखनी है मुझको।
माँ तेरे दु:ख-दर्द, बहुत हैं देखे मैंने।
तेरी होंठो पर वो खिलखिलाहट,
अब देखनी है मुझको।
वो तेरी जिद, वो रूठना-मनाना,
वो भी देख पाती मैं फिर से।
काश! कि ऐसा हो जाता,
मैं माँ बन जाती तेरी!
थपकी देकर तुझे सुलाना,
अपने हाथों से तुझे खिलाना।
ले गोद में वही गीत सुनाना,
माँ संग तेरे फिर से जी लेती।
काश! कि ऐसा हो जाता,
मैं माँ बन जाती तेरी!
माँ मुझको भी मौका दे,
तेरे हर शौक मैं पूरा करती।
अपनी बाहों में तुझको भरकर,
तेरी हर वेदना को मैं हर लेती।
काश! कि ऐसा हो जाता,
मैं माँ बन जाती तेरी!
तुझे नजर का काला टीका लगाती,
वो निश्छल प्रेम तुझे कर पाती।
अपनी बाहों में तुझको भर कर,
तुझे अपने दिल में,
छुपने की जगह दे देती।
काश! कि ऐसा हो जाता,
मैं माँ बन जाती तेरी!
आकांक्षा प्रिया
Nayi wali story आकांक्षा प्रिया को उनके लेखन के लिए बधाई देती है, साथ ही उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती है।
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