देहाती लड़के : हिंदी प्रेम कहानी ( college life book)
मेरा कमरा पहली मंजिल पर था। कमरे के बगल ही किचन और किचन के बगल ही वॉशरूम था। सामने थोड़ी-सी छत थी। सीढ़ियाँ घर में प्रवेश करते ही बाहर से थीं, जिससे कोई भी व्यक्ति मकान मालिक से मिले बिना सीधे मेरे कमरे में आ सकता था। शशांक आके सीधे वॉशरूम या किचन में ही जाता था। वैलेंटाइन डे के दिन उसका भी कोई ठिकाना नहीं था। वैलेंटाइन डे की उस रोमांटिक बारिश में हम दोनों ही अभागे थे। अपने-अपने स्तर के अभागे। हम दोनों के जीवन में सूखा पड़ा था और युवान जी बाढ़ राहत कार्य पर गए थे। शशांक अपने इस अभागेपन को खुल के स्वीकारता था और मैं खुद को अपने आत्मसमान के बनाए मुगालते में रखता था।
मेरा कमरा पहली मंजिल पर था। कमरे के बगल ही किचन और किचन के बगल ही वॉशरूम था। सामने थोड़ी-सी छत थी। सीढ़ियाँ घर में प्रवेश करते ही बाहर से थीं, जिससे कोई भी व्यक्ति मकान मालिक से मिले बिना सीधे मेरे कमरे में आ सकता था। शशांक आके सीधे वॉशरूम या किचन में ही जाता था। वैलेंटाइन डे के दिन उसका भी कोई ठिकाना नहीं था। वैलेंटाइन डे की उस रोमांटिक बारिश में हम दोनों ही अभागे थे। अपने-अपने स्तर के अभागे। हम दोनों के जीवन में सूखा पड़ा था और युवान जी बाढ़ राहत कार्य पर गए थे। शशांक अपने इस अभागेपन को खुल के स्वीकारता था और मैं खुद को अपने आत्मसमान के बनाए मुगालते में रखता था।
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Dehati ladke valentine love story in hindi
"रजत भाई, आज डे कौन-सा है?" मुझे छेड़ते हुए बोला और मेरे बेड पर पसर गया। मैंने उसे पलट के एक बार देखा, फिर अलमारी में रखे अपने डिओडरंट की तरफ देखा। मेरा कमरा बाबूगंज में था जो यूनिवर्सिटी से एकदम पास, 200 मीटर की दूरी पर था और शशांक का अलीगंज- यूनिवर्सिटी से दो किलोमीटर की दूरी पर। शशांक पहले मेरे रूम पर आता, अपनी रेंजर साइकिल खड़ी करता और हम दोनों साथ कॉलेज पैदल जाते थे। आज यूनिवर्सिटी जाकर अपनी इज्जत उतरवाने का कोई मतलब भी नहीं था। शशांक रोज चलने से पहले मेरे डिओडरंट पर धावा बोलता था, इसलिए मैं उसके आते ही उसे छुपा देता था और डर्मी कूल आगे कर देता था... कि बेटा, इससे जितना कूल होना है हो लो। नहीं मतलब अगल-बगल छिड़क लो ठीक है, पर पूरे छह फीट की काया पर घुमा-घुमा के डीओ से नहाना कहाँ का इंसाफ है? ऊपर से तुम्हें कोई सूँघने वाला भी नहीं है।
मैंने चाय की चुस्की ली। कप टेबल लैंप के बगल रखा, अपनी उँगलियाँ चटकाईं और फिर उसकी तरफ देखते हुए कहा, “देखो! आज है मंडे! और कोई ‘डे’ नहीं है, समझे?
शशांक ने मुँह लटका लिया, "रजत मेरे भाई! तुम्हें नहीं लगता कि एक लड़की होनी चाहिए जिंदगी में?”
मैंने अपनी कुर्सी, स्टडी टेबल से उसकी तरफ घुमाई, "देखो आर्य श्रेष्ठ! इस बारे में कोई बात नहीं होगी।"
“मगर फिर भी...”
मैंने उसे घूर के देखा। उसने आगे का डायलॉग मुँह में ही रोक लिया।
“भाई! कहीं घूम के आते हैं यार। युवान की बाइक लेते हैं और कहीं चलते हैं।”
“तुम्हें लगता है आज उसकी बाइक खाली होगी? सुबह-सुबह ही टॉम क्रूज साहब बन-ठन के निकल गए हैं।”
“चलो यार, पैदल ही टहलते हैं। बाहर निकले तो! देखें क्या माहौल है बाहर का? तुम्हें पता है बाहर क्या चल रहा है?”
आज के दिन पढ़ने-लिखने का मन मेरा भी नहीं था। मेरे अंदर भी कुलबुलाहट हो रही थी कि देखें तो बाहर क्या हो रहा है। मैंने उसकी पैदल टहलने की सलाह मान ली। किताब बंद की, कमरे में ताला लगाया और शशांक के कंधे पर हाथ रखे निकल पड़ा। शशांक शनैःशनैः अपना दर्द बयाँ कर रहा था। एक्सप्लेन करते-करते ख्वाबों की दुनिया में चला गया, “भाई, हर तरफ प्यार की कलियाँ खिल रही हैं, पक्षी चहचहा रहे हैं, वो झाड़ी के पीछे, वो झुरमुट के नीचे...और हमारी जिंदगी में क्या है? उजाड़, सूखा! ये क्या है रजत? ये सब क्या है?”
हम टहलते-टहलते सड़क पर आ गए थे। अब धीरे-धीरे हजरतगंज की ओर बढ़ रहे थे। दिन कुछ नॉर्मल ही लग रहा था। आसमान साफ था और सर्दी की गुनगुनाती धूप खिली हुई थी। हवा भी हल्की-हल्की बह रही थी। कहीं कहीं एकाध जोड़ा बाइक से निकल जाता था जो दूर से ही अलग दिख जाता था, क्योंकि उसमें लड़की ड्राइवर के ऊपर चढ़ी होती थी। शशांक छेड़ता- “भाई वो देख! वो देख!” बाकी लोग अपने काम में ही लगे हुए थे। हमने तय किया कि हम लालबाग में लखनऊ के फेमस चायवाले "शर्मा चाय" के यहाँ चाय पिएँगे और वहाँ से सहारागंज मॉल जाएँगे। अगर मूवी का टिकट सस्ता हुआ तो मूवी भी देख लेंगे। हम दोनों जानते थे कि आज के दिन टिकट सस्ता होने का कोई चांस नहीं है, फिर भी हम दोनों खुद को छलावा दे रहे थे कि हम भी अपनी जिंदगी में खुश हैं। हमने ढाई सौ ग्राम चने पैक कराए थे और वही फाँकते हुए जा रहे थे। रह-रहकर शशांक का सिंगल होने का दर्द छलक आता।
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Dehati ladke student life love story in hindi |
"भाई, आज के दिन पूरा लखनऊ सजा हुआ है। सहारागंज मॉल, वेव, फन, फीनिक्स, आर्चीज गैलरी, सब सजे हुए हैं। सब रेड और वाइट बलूंस से अपनी दुकानें सजाए हुए हैं। मैंने पता किया, स्साला कल तक जो गुलाब 20 का था, आज 70 का मिल रहा है।”
“तो? तुम्हें क्या लगता है, प्यार सस्ता है? आज के दिन अपनी दुकानें किसने सजाईं? जिसे मुनाफा कमाना है! समझे? प्यार एक कैपिटलिस्टिक अवधारणा है। इस दिन को हाईलाइट वही करेंगे जिनको इससे प्रॉफिट होता है, कैड्बरी और आर्चीज गैलरी जैसे ब्रांड समझे?” मैंने एक नया पैंतरा फेंका।
“मगर यार, एक उम्र के बाद इस शरीर की कुछ माँगें भी होती हैं। यार, कुछ डिमांड होती है। ये कड़कड़ाता शरीर, कभी-कभी कुछ नरम को अपनी बाँहों में भरने की कामना करता है यार।” उसने चलते-चलते हवा को ही अपनी बाँहों में भरने की कोशिश की। “यार रजत... लड़की होनी चाहिए यार।”
"बेटा ये प्यार-व्यार, इश्क-खुमारी, पेट भरे होने के बाद के विचार हैं। दो दिन भूखे रहो तब देखें कि शरीर किस चीज की डिमांड पहले करता है।"
“सच में यार?” उसने मेरी तरफ कौतूहल से देखा, फिर अपने चेहरे का एक्सप्रेशन बदला। “फिर ये पूड़ियाँ खाकर गलत किया मैंने। सुबह-सुबह पूड़ियाँ न खाई होतीं तो ये गंदे विचार न आते। शिट!" उसने अफसोस किया। मैंने भी अपने अकाट्य तर्क पर संतोष प्रकट किया कि चलो, अब कुछ देर तो ये चुप रहेगा। मगर थोड़ी देर बाद फिर-
"यार रजत, मगर लड़की होनी चाहिए भाई!"
“हाँ, लड़की तो चाहिए!” (मैंने उसे इस नजर से देखा कि अगर मुझे भगवान वरदान देते तो मैं तुम्हारे लिए अभी लड़की बन जाता।)
“मुझे सच्चा प्यार कब मिलेगा भाई? रजत! बताओ यार!” उसने उदास, उतावली आँखों से मेरी ओर देखा।
मैं गंभीर हुआ। उसकी आँखों में देखता हुए बोला, “भाई! बरगद के नीचे देशी घी के दिए जलाओ,” और गंभीर ज्योतिष की तरह पलकें झपकाईं।
“भक्क स्साले! तुम फिरकी ले रहे हो!” उसने मेरी गर्दन मरोड़ी। थोड़ी देर बाद फिर फिलॉसफिकल हो गया, “ये जो उँगलियों के बीच खाली जगह देख रहे हो, ये पोर हैं! रजत मेरे भाई, ये किसी के भरने के लिए हैं।” उसने अपनी हथेलियाँ अपने चेहरे के सामने लाईं, फिर उन्हें पलट के देखा।
मैंने उसकी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ डालते हुए कहा, "लो भर गए तुम्हारे पोर!"
उसने एक ठंडी आह भरी, "तुम कौन-कौन से पोर भरोगे मेरे दोस्त?"
"भक्क! स्साले हरामी।" मैंने तुरंत अपनी उँगलियाँ खींच लीं। वो हँस पड़ा। मैं नहीं पकड़ पाया था कि पोर की यह फिलॉसफी वो पोर्न कर देगा।
उसे एक फ्रस्ट्रेटेड आइडिया सूझा, "क्यों न हम लोग बजरंग दल या शिव सेना जॉइन कर लें। जितने लोग आज के दिन प्यार कर रहे हों, सब को कंटापित करें?"
"अबे पागल हो क्या। अपना युवानवा भी होगा कहीं पे। मेरे पास एक नया आइडिया है (मैंने आँख मारते हुए कहा)। हम लोग एक नया दल बनाएँगे। प्यार बाँटने वाला दल। कृष्णा कन्हैया दल।” मैंने आखिरी मूठा चना उठाते हुए कहा। उसने वितृष्णा से ‘यह संसार नश्वर है’ वाली हँसी हँसी। बात खत्म हो गई। वापस आकर मैंने चाय चढ़ा दी। जब उसे चाय पीनी होती थी तो वो मिलिट्री प्लानिंग में बिस्कुट पहले ही खरीद लेता था, फिर मैं जबरदस्ती उससे दूध भी खरीदवाता था। हम सारा शहर घूम-घुमा के वापस लौट आए थे और कमरे पर लौटकर दिनभर के देखे हुए कपल्स की विवेचना कर रहे थे। एक लड़की बहुत क्यूट थी और उसका बॉयफ्रेंड बहुत भुच्चड़ था। हम दोनों इस बात पर सहमत थे कि यह मिलन शास्त्रोचित नहीं था। हम दोनों छत की रेलिंग पर खड़े विलाप ही कर ही रहे थे कि नीचे मोटरसाइकिल की दगदगदग सुनाई दी। झाँककर देखा तो टॉम क्रूज लौट आए थे। उसने हाथ हिला के हाय किया, हम दोनों ने हाय भी नहीं किया। अपनी-अपनी चाय के कड़वे घूँट लिए। हम दोनों में करार हुआ कि कोई इस कामदेव आदमी से बात नहीं करेगा। हम दोनों जलन में मरे जा रहे थे। वो खट्खट्खट जीना चढ़ता हुआ आ रहा था और हम दोनों दूसरी तरफ देख रहे थे। कुढ़न के मारे हम उससे बात भी नहीं करना चाहते थे। अभी ये आएगा और अपने रोमांस के किस्से सुनाएगा। सुपर लकी हरामखोर! हमारी ही तरफ आ रहा था, हम दूसरी तरफ देख रहे थे। समझौता अपनी जगह बरकरार था, मगर उसके हाथों में तीन-चार गिफ्ट्स के डब्बे देखकर हमने उस पर हमला कर दिया।
Excerpt from : देहाती लड़के
शशांक भारतीय
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Dehati ladke/ देहाती लड़के |
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