उपन्यास पतरकी के तत्वों के आधार पर समीक्षा
'पतरकी' नवोदित लेखक "आशीष त्रिपाठी" द्वारा लिखा गया एक चर्चित उपन्यास है, जिसकी समीक्षा बिंदुवार निम्नवत् है -
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Patarki book review nayi wali story/ पतरकी पुस्तक समीक्षा नई वाली स्टोरी |
कथावस्तु -
'पतरकी' आँचलिकता समेटे एक सामाजिक उपन्यास है, जिसका कथानक या प्लॉट रोचक है। कथानक का आरम्भ हो, मध्य हो अथवा अंत हो, गतिशीलता बनी हुई है। इसकी कथावस्तु का प्रथम दर्शन इसके शीर्षक 'पतरकी' के रूप में होता है, जो पाठकों में कौतूहल संचरित करने में सहायक होता है। पूरी कथावस्तु संभाव्यता से भरपूर है, पाठकों को कोई भी घटना, चरित्र असंभाव्य नहीं प्रतीत होगी। इसकी मौलिकता अर्थात् प्रस्तुति के ढंग की बात करें तो पायेंगे कि प्रस्तुति बेहतरीन है, जो पहली पंक्ति से आखिरी पंक्ति तक आपको जोड़े रखेगी।
पात्र -
प्रत्येक उपन्यास की गति में प्रमुख सहायक पात्र होते हैं। इस उपन्यास की पात्र-योजना सजीव, स्वाभाविक, सहज एवं संतुलित है। पतरकी, मोहित, कुबेरदत्त, पालकी, जोता देवी, धनुधारी, चतुरानन, मंजरी एवं दुर्लभ सिंह आदि इसके अद्भुत पात्र हैं।
पात्रों के बाह्य व्यक्तित्व की रचना उचित है, इनका आकार, रूप, वेशभूषा, आचरण, बातचीत का ढंग उपन्यास की सफलता में सहायक हुए हैं। प्रत्येक पात्र की मानसिकता तथा बौद्धिक विशेषता भिन्न है, जो लेखक की समझदारी को दर्शाती है। केंद्रीय पात्र 'पतरकी' है , शेष गौड़ हैं जो केंद्रीय पात्र से संबंधित हैं।
संवाद-योजना -
इस उपन्यास की संवाद-योजना अथवा कथोपकथन बहुत ही रोचक, स्वाभाविक एवं उद्देश्यपूर्ण है। पात्रों के संवाद बड़ी सीख दे जाते हैं। जैसे -
(1) पालकी - "आग लगे ऐसे बड़े आदमियों को और ऐसे शऊर को जिसमें अपनी बहन-बेटी परोस देनी पड़े।"
(2) पतरकी - "जिंदगी फिल्मों की तरह नहीं होती कि कुछ कसमें खा लीं, कुछ अभिनय कर लिया और सब अपने अनुकूल हो गया।"
कुलमिलाकर इसका संवाद संक्षिप्त, परिस्थिति के अनुकूल है, साथ ही उपन्यास को गति देने में एक सीमा तक सहायक भी है।
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Patarki hindi author book review |
देशकाल-वतावरण -
इस उपन्यास का परिवेश कथावस्तु के अनुकूल है, जो प्रत्येक सफल उपन्यास के लिए अनिवार्य होता है । परिवेश ग्रामीण अंचल लिए हुए है जिसका निर्वहन रीति-रिवाज, रहन-सहन, व्यवहार, वेशभूषा, बोलचाल, सामाजिक, सांस्कृतिक बिंदुओं के माध्यम से सफलतापूर्वक किया गया है और यही निर्वहन 'पतरकी' की कथा को यथार्थ से अभिन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भाषा-शैली -
'पतरकी' की सफलता में भाषा-शैली अपना विशेष स्थान रखती है। इसमें पात्र की भाषा उनका व्यक्तित्व उजागर कर देती है। इसकी भाषा स्पष्ट, सरल एवं प्रवाहपूर्ण है तथा शैली विवरणात्मक पुट लिए हुए घटना-प्रधान है। इसका एक संवाद भी आपको इससे जोड़ सकता है। जैसे -
कुबेरदत्त - " मेरे अंदर सौ कमियाँ हैं, मैं झूठ बोलता हूँ, लालची हूँ लेकिन किसी की बहन-बेटी को कभी गलत नजर से नहीं देखा बाबू। "
उद्देश्य-
क्योंकि प्रत्येक लेखन का एक उद्देश्य होता है तो इस उपन्यास का भी कोई न कोई उद्देश्य अवश्य ही रहा होगा। यदि पाठकों की दृष्टि से देखें तो इसका उद्देश्य ग्रामीण (आँचलिक) - समाज की विसंगतियों को उजागर करते हुए, यथार्थ दर्शन कराते हुए जिजीविषा की स्थापना करना है।
वर्तमान समय की जटिलताओं को देखते हुए लेखक का यह उद्देश्य सराहनीय है। यह उपन्यास अपने कथावस्तु, पात्र, संवाद, देशकाल और भाषा के अनुपम संयोजन से अपने उद्देश्य में सफल रहा है।
nayi wali story आशीष त्रिपाठी को उनके लेखन के लिए बधाई देती है, साथ ही उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती है।
सधन्यवाद!
nayi wali story आशीष त्रिपाठी को उनके लेखन के लिए बधाई देती है, साथ ही उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती है।
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समीक्षक:- खनक तिवारी
(Nayi wali story Admin panel)
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