गुनाहों का देवता- धर्मवीर भारती (Gunahon ka Devta Book Review)
डॉ धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद के अतर सुइया मुहल्ले में हुआ। स्कूली शिक्षा डी. ए वी हाई स्कूल में हुई और उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में।आधुनिक हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार धर्मवीर भारती को 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है। उनका उपन्यास सबसे पहले 1951 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास की अपार लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि विगत 57 सालों में इस उपन्यास के विभिन्न भाषाओं मे सौ से भी अधिक संस्करण छप चुके है। युवा वर्ग में यह उपन्यास हमेसा से लोकप्रिय रहा है और हाँ धर्मवीर भारती जी भी अपनें जीवन काल में यह कभी नहीं समझ पायें की यह उपन्यास इतना लोकप्रिय क्यों हुआ ? आदर्शवाद के दौर में यह उपन्यास प्रकशित हुआ था।
उपन्यास के शुरुवात में ही धर्मवीर जी कहतें हैं कि " मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसे ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी श्रद्धा से प्रार्थना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वही प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बस...
इस कहानी का ठिकाना अंग्रेज ज़माने का इलाहाबाद रहा है। कहानी के तीन मुख्य पात्र हैं : चन्दर , सुधा और पम्मी। पूरी कहानी मुख्यतः इन्ही पात्रों के इर्दगिर्द घूमती रहती है। चन्दर सुधा के पिता यानि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के प्रिय छात्रों में है और प्रोफेसर भी उसे पुत्र तुल्य मानते हैं। इसी वजह से चन्दर का सुधा के यहाँ बिना किसी रोकटोक के आना जाना लगा रहता है। धीरे धीरे सुधा कब दिल दे बैठती है, यह दोनों को पता नहीं चलता। लेकिन यह कोई सामान्य प्रेम नहीं था। यह भक्ति पर आधारित प्रेम था। चन्दर सुधा का देवता था और सुधा ने हमेशा एक भक्त की तरह ही उसे सम्मान दिया था।
उन दिनों वह पतली-दुबली सुधा पतली-दुबली नहीं रही थी।सुधा की शादी होनें की तैयारी हो रही थी। सुधा शादी से हमेशा इंकार करती है क्यूंकि उसे चन्दर से प्यार हैं लेकिन चन्दर जिस आदमी के आश्रय तले पढ़ा, उसको कैसे धोखा देता? शायद इसी वजह से वह सुधा को नहीं अपना पाया। जब डॉ. शुक्ला द्वारा सुधा की शादी तय की गयी तो चन्दर को ही सुधा से हाँ कहलाने की जिम्मेदारी मिली।हाय री विडम्बना! जो सुधा चन्दर को मन ही मन इतना चाहता था, वही किसी दुसरे से उसका रिश्ता तय करवाने चला। काफ़ी मुश्किल से। और बहुत जल्द सुधा की शादी हो जाती हैं।
धर्मवीर भारती ने अपनें उपन्यास में पम्मी को चन्दर के संबंधों की गहराई से बताते हुए थोड़ा सेक्सुअल टच तो दीये है मग़र वल्गैरिटी नही रख्खि, उसमे सिहरन है रोमांच व रोमांस है पर उत्तेजना नही।एक जगह जब चन्दर पम्मी को छूता है तो उसके अनुभव के बहाने धर्मवीर भारती आदमियों को लेकर औरतों की समझ का बयान यूँ करते हैं...
औरत अपने प्रति आने वाले प्यार और आकर्षण को समझने में चाहे एक बार भूल कर जायें लेकिन वह अपने प्रति आने वाली उदासी और उपेक्षा को पहचानने में कभी भूल नहीं करती।वो होठो पर होठो के स्पर्शो के गुढ़तम अर्थ समझतीं हैं। वो आपके दिल की धड़कनों की भाषा समझ सकतीं हैं, यदि उन्हें थोड़ा सा भी अनुभव है।
मैके में जरुर सुधा को सुख मिल रहें थें मग़र चन्दर की याद उसे उजाड़ कर रख दिया और यूँ ही एक दिन चन्दर की बाँह पर बिनती और डॉ शुक्ला के सामने ही लुढ़क गयी...सहसा सुधा की आँखों में अंधेरा छा गया। जब एम्बुलेंस कार पर सुधा का शव बँगले पर पहुँचा तो शंकर बाबू आ गये थे- बहू को बिदा करने...
जिंदगी का यन्त्रणा-चक्र एक वृत्त पूरा कर चुका था। सितारे एक क्षितिज से उठकर आसमान पार कर दूसरे क्षितिज तक पहुच चुके थे। साल-डेढ़ साल सहसा जिन्दगी की लहरों में उथल-पुथल मच गयी थी और विक्षुब्ध महासागर की तरह भूखी लहरों की बाँहें पसारकर वह किसी को दबोच लेने के लिये हुंकार उठी थी। अपनी भयानक लहरों के शिकंजे में सभी को झगझोरक, सभी के विश्वासों और भावनाओं को निगलकर अब धरातल शान्त हो गया- तूफान थम गया था, बादल खुल गये थे और सितारे फिर आसमान के घोंसलों से भयभीत विहंग-शावकों की तरह झाँक रहे थे।
त्रिवेणी पर कार रुक गयी। हल्की चाँदनी मैले कफन की तरह लाश पडी हुई थी। दिन भर कमाकर मल्लाह थककर सो रहे थे।एक बूढ़ा बैठा चिलम पी रहा था। चुपचाप उसकी नाव पर चन्दर बैठ गया। बीच गंगा में पहुचकर गठरी खोला... फिर रुक गया, शायद फेकने का साहस नही हो रहा था...विनती चुपचाप सिसक रही थी। चन्दर ने चुटकी में राख उठाया और विनती की माँग में भरकर माँग चूम लिया और गठरी सहित गंगा में राख फेक दिया गंगा की लहरों में बहता हुआ राख का साफ टूट-फुटकर बिखर चुका था और नदी फिर उसी तरह बहने लगी थी। सितारें टूट चुके थे। तूफान ख़त्म हो चुका था।
- Deepak Kesharwani