मंटो की कहानियाँ शोषित, पीड़ित, हाशिये पर रहने वाली औरतों के लिए संवेदनाएं व्यक्त करती है । Saadat Hasan Manto । मंटो के जन्मदिवस पर उनको एक खत । मंटो जन्मदिवस पर लेख ।
-आशिक
प्यारे मंटो साहब,
आज आपकी यौम - ए - पैदाइश पर, मैं आपको यह ख़त लिख रहा हूं । यह आपके द्वारा, अंकल सैम यानी अमरीका, को लिखे गए पत्रों जितना मक़बूल तो नहीं होगा, मगर यक़ीन मानिए, इस ख़त में सच्चाई, ईमानदारी उसी दर्जे की है, जिसे आप ताउम्र जीते रहे।
मंटो साहब, मुझे उम्मीद है कि आप इस वक़्त, जन्नत में बेचैन हो रहे होंगे। कई अफ़साने आपकी उंगलियों पर तैर रहे होंगे। यह मुनासिब भी है, आज का दौर, आपके दौर से भी ज़्यादा नक़ाबिल - ए - बर्दाश्त हो चुका है, ऐसे में आपकी क़लम किस तरह ख़ामोश रह सकती है।
आप से तार्रुफ़ ज़रा देर से हुआ मगर लेखन में मेरे पहले उस्ताद आप ही थे। जब आपको पढ़ा, आपके अफ़सानों को जिया, तब मालूम हुआ कि हमारी तारीख़ में एक बेइंतहा ख़ूबसूरत बुज़ुर्ग गुज़रा है।
मंटो साहब, मैंने बहुत कुछ सीखा है आपसे। लेखन क्या है, लेखक क्या है, यह वो बुनियादी प्रश्न हैं, जिनके जवाब आपकी करिश्माई दुनिया में मिलते हैं।
जिस तरह के आपके हालात रहे उन्हें बारीक़ी से देखने पर ही कोई आपके संघर्ष को समझ सकता है।
आपको कहां किसी ने चैन से लिखने दिया। आपके सच्चे अफ़सानों पर अश्लीलता का आरोप लगाकर, आपको कोर्ट कचहरी में घसीटा गया। आए दिन कोर्ट कचहरी के चक्कर, मुक़दमों पर होने वाले खर्च ने आपको थका कर रख दिया। आपको भी ये देखकर कोफ्त होती होगी कि तमाम बुराइयों पर चुप रहने वाला, झूठ, फरेब का नक़ाब ओढ़ने वाला, दोगलेपन की तस्वीर चेहरे पर चिपका कर घूमने वाला समाज आख़िर क्यों ये ज़माने आपके लेखन को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है।
आपके समकालीन लेखकों ने भी आपके लेखन को वक़्त के हिसाब से जायज़ नहीं माना। उन्होंने लगातार कोशिश की कि आप पर्दे में लिखें। मगर आपके यह डंके की चोट पर कहा कि लेखक का काम समाज को कपड़े पहनना नहीं है। अगर समाज नंगा है तो उसकी नंगापन सामने आकर ही रहेगा, अलबत्ता इसमें लेखक एक कैटलिस्ट की भूमिका निभा सकता है।
उस दौर में प्रकाशकों ने भी आपका ख़ूब ख़ून पिया। शराब , घरेलू ज़रूरतों, बेटी के ईलाज के ख़र्च के लिए आपको पैसों की सख़्त ज़रूरत रहती थी। ऐसे में आप अफ़साने लिखते और उसी से आपकी आमदनी होती। मगर आप एक लेखक थे सौदागर नहीं। आपके इसी भोलेपन का फ़ायदा उठाकर, प्रकाशकों ने मनमाने ढंग से आपसे लिखवाया और जिस तरह से आपका शोषण हो सकता है, वह किया। मामूली दामों में आपकी किताब के राइट्स ख़रीद लिए गए। आपको रुपए - रुपए के लिए मोहताज कर दिया गया।
मंटो साहब, जब मैं सोचने बैठता कि वह क्या कारण रहा होगा, जो आपने शराब पी पीकर, ख़ुद को ख़त्म कर लिया, तो आपकी रूह सामने आकर खड़ी हो जाती है और अपनी सफ़ाई पेश करने लगती है।
आपके सबसे बड़े दर्द में एक था विभाजन के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान चले जाना। मुंबई से दूर होना, आपके सीने पर सबसे बड़ा ज़ख़्म था। आपको रह रहकर हिंदुस्तान और आपका बम्बई याद आता होगा, जो आपको चैन से सोने नहीं देता होगा। आपने बंटवारे के वक़्त, जो ख़ून ख़राबा देखा होगा, उसके बाद कोई कैसे चैन से ज़िन्दगी भर सो सकता है।
इसके साथ ही समाज की बाक़ी बुराईयों ने भी आपको मुतासिर किया था। ग़रीबी, भुखमरी, मालिक के द्वारा शोषण, गैर बराबरी, औरतों की बदहाल स्थिति, पुलिस और क़ानून की अपंगता, मज़हबी अंधापन, यह सब देखकर आपका दिल तड़प गया होगा। आपके लिए बहुत मुश्किल हो गया होगा, इस सब को देखते हुए जीना। और शायद इसी कारण आपने बेतहाशा शराब पीना शुरू कर दिया होगा। आपको धीरे धीरे मौत को गले लगाना शुरू कर दिया होगा।
मंटो साहब आप औरतों के प्रति कितनी हमदर्दी रखते थे। आपकी कहानियों में शोषित, पीड़ित, हाशिये पर रहने वाली औरतों के लिए कितनी संवेदनाएं नज़र आती थीं। आपकी दोस्त इस्मत चुग़ताई, आपकी बीबी सफिया और आपकी बेटियों से अापके रिश्ते, यह बताते हैं कि आपका दिल कितना कोमल था। आप घुटते थे, आपको तकलीफ़ होती थी, यह देखकर कि आपकी वजह से आपके अज़ीज़ परेशानी का सामना कर रहे हैं। आप भी चाहते थे कि सभी सुखी रहें, मगर जब तक आप लिखते रहते, तब तक किसी का सुखी रहना मुमकिन नहीं था। ये समाज, इसके लोग, आपकी आवाज़ को एक खलल की तरह देखते थे।
मंटो साहब, आज मैं भी थोड़ा बहुत लिखने लगा हूं। कुछ लोग हैं, जो मुझे चाहते हैं, प्यार करते हैं। समय आज बहुत बदल चुका है। मगर इसके बाद भी हालात जस के तस हैं। धार्मिक उन्माद, कट्टरता, ख़ून ख़राबा अभी भी समाज में कैंसर की तरह फैल रहा है। औरतों पर होने वाले अपराध अभी भी जारी हैं। ग़रीबों, किसानों, मज़दूरों का शोषण आज भी खुलेआम हो रहा है। सरकार, जनता ही सबसे बड़ी दुश्मन बनी हुई है।
आपके और मेरे समाज की बात करें तो, आज भी लेखक की वही दुर्गति हुई है। लेखकों को आपसी वैमनस्य, ईर्ष्या का स्तर चरम पर है। प्रकाशक का ख़ून पीना, बदस्तूर जारी है। किताब लिखने, छपवाने और बेचने में आज लेखक, लेखक कम भिखारी ज़्यादा नज़र आ रहा है। मठाधीशी आज भी पकड़ बनाए हुए है, किसे सम्मान मिलेगा, कौन साहित्यिक गोष्ठी, संस्था का मुखिया बनेगा, किसे जलसों में तकरीर के लिए बुलाया जाएगा, किसकी समीक्षा लिखी और प्रकाशित की जाएगी, यह चाटुकारिता, चरम चुम्बन के स्तर पर निर्भर कर रहा है। झूठ का बाज़ार गर्म है। एक दूसरे को खा जाने की होड़ चल रही है। ऐसे में कौन मुद्दों को उठाने, आवाज़ देने की ज़हमत करेगा, मंटो साहब। मैं ख़ुद को इस सब से दूर कर चुका हूं। किसी पद, सम्मान, लोकप्रियता, लिस्ट, मठ से न मेरा रिश्ता है, न मुझे दिलचस्पी। बस लिखना, कलाकारी मुझे प्रिय है, जो बिना दबाव के, मैं निरंतर कर रहा हूं।
मंटो साहब, लेखन में आज भी आप एक प्रकाश पुंज हो। आप के जीवन से रोशनी मिलती है। आपने कभी भी किसी सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, पैसे के लिए अपनी क़लम गिरवी नहीं रखी। यह सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि अत्यंत गरीबी में भी, आपने अपनी आत्मा को नहीं बेचा।
मंटो साहब, जैसा कि आप जानते हैं कि इस देश, दुनिया में आदमी मरने के बाद याद किया जाता है, ठीक वही आज आपके साथ हो रहा है। आपकी किताबें, कहानियां, आपका नाम आज फैशन स्टेटमेंट बन गया है। लोग आपकी कहानियों पर वेब सीरीज, फ़िल्में बनाकर, किताबें छापकर पैसा बना रहे हैं। आपके नाम को बेचने का धंधा ज़ोर से चल रहा है। बाज़ार में नाम से ऐसी किताबें बिक रही हैं, जिनके नाम सुनकर आपको भी हैरत होगी कि यह मैंने कब लिखीं, लोग अपने बगल में आपकी किताब दबाकर, सड़क पर घूमते हुए पाए जाते हैं, चाहे फिर उन्होंने उस किताब को कभी खोलकर न देखा हो।
आज आपके जन्मदिन पर लोग स्टेटस लिखेंगे, फोटोज़ पोस्ट करेंगे, देश में कई जगह होने वाले गोष्ठी, सम्मेलन में शामिल होंगे। फिर यही लोग औरत को कमज़ोर समझकर उसकी बेइज़्ज़ती करेंगे, उसके साथ हिंसा करेंगे। यही लोग गरीब, किसान, मज़दूरों का हक़ मारेंगे। यही लोग सरकार की भक्ति करेंगे। यही लोग लेखकों, कलाकारों पर तंज़ करेंगे। यही लोग लेखकों से फ़्री में किताब मांगेंगे, उनसे मुफ़्त में लिखने के लिए कहेंगे।
कुल मिलाकर मंटो साहब, ज़माना वाकई नक़ाबिल - ए - बर्दाश्त है। आपका ये चाहनेवाला, अपनी योग्यता, क्षमता अनुसार कोशिश कर रहा है जीने की, लोगों की ज़िंदगी में प्रेम, सुख, ख़ुशी भरने की।
आप बस अपनी दुआएं साथ रखिएगा, ये हिम्मत दीजिएगा कि क़लम की ताक़त, सच्चाई बची रहे, बनी रहे।
सच्चाई ज़िंदा रहे, संघर्ष ज़िंदा रहे, प्रेम ज़िंदा रहे, मंटो ज़िंदा रहे
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