शिवरानी देवी को कहानियाँ लिखते देख प्रेमचंद खूब खुश होते। उससे भी अधिक खुश तब होते जब उनकी कहानियों का अनुवाद किसी दूसरे भाषा में होती। एक दिन प्रेमचंद ऑफिस की "चाँद" पत्रिका में उनकी लिखित कहानी पढ़े तो घर आते ही शिवरानी से बोलें- अच्छा, तो अब आप भी लेखिका बन गईं।’
लोटे में पानी देते हुए शिवरानी कहतीं "हमारी इच्छा! मैं भी मज़बूर हूँ। अब आदमी अपने भावों को कहाँ रखे?" फिर दोनों आँचलिकता की भाषा ओढ़े एक साथ हँसने लगते।
कई बार ऐसा भी होता जब कहानी का प्लाट ढूँढने के कारण शिवरानी को नींद नहीं आती, तब प्रेमचंद करवट बदलते हुए कहते "तुमने क्या अपने लिए एक बला मोल ले ली? आराम से रहती थीं, अब फ़िजूल का एक झंझट ख़रीद ली हो।"
तब शिवरानी बदले में बोलतीं "आपने नहीं बला मोल ले ली! मैं तो कभी-कभी लिखती हूँ, आपने तो अपना पेशा बना रखा है।" फिर दोनों एक साथ खिलखिला उठते।
क़िस्मत का खेल कभी नहीं जाना जा सकता। कई बार खुशियाँ दम घोट कर पन्ने में दर्ज हो जाती हैं। शिवरानी देवी पुस्तक "प्रेमचंद घर में" लिखती भी हैं कि आज वे होते तो कुछ और ही बात होती। लिखना-पढ़ना तो उनका काम ही था। मैं यह नहीं लिख रही हूँ, बल्कि शांति पाने का एक बहाना ढूँढ रही हूँ। बीसों वर्ष की पुरानी बातें याद करके मेरा दिल बैठ जाता है। मेरे वश में है ही क्या? हाँ, पहली बातों को सोचकर मुझे नशा-सा हो जाता है। उस नशे से कोई उत्साह नहीं मिलता, बल्कि एक तड़पन-सी पैदा होती है। अब बस बीती बातों को याद करके मन बहला लेती हूँ।
जब मैं स्कूल में रहता हूँ, तब तक ही नौकर रहता हूँ। बाद में मैं अपने घर का बादशाह बन जाता हूँ
उन दिनों मुंशी प्रेमचंद शिक्षा विभाग के डेप्युटी इंस्पेक्टर थे। एक दिन इंस्पेक्टर स्कूल का निरीक्षण करने आया। उन्होंने इंस्पेक्टर को स्कूल दिखा दिया।
दूसरे दिन वह स्कूल नहीं गए और अपने घर पर ही अखबार पढ़ रहे थे। जब वह कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे तो सामने से इंस्पेक्टर की गाड़ी निकली। इंस्पेक्टर को उम्मीद थी कि प्रेमचंद कुर्सी से उठकर उसको सलाम करेंगे। लेकिन प्रेमचंद कुर्सी से हिले तक नहीं।
यह बात इंस्पेक्टर को नागवार गुजरी। उसने अपने अर्दली को मुंशी प्रेमचंद को बुलाने भेजा। जब मुंशी प्रेमचंद गए तो इंस्पेक्टर ने शिकायत की कि तुम्हारे दरवाजे से तुम्हारा अफसर निकल जाता है तो तुम सलाम तक नहीं करते हो।
यह बात दिखाती है कि तुम बहुत घमंडी हो। इस पर मुंशी प्रेमचंद ने जवाब दिया, 'जब मैं स्कूल में रहता हूँ, तब तक ही नौकर रहता हूँ। बाद में मैं अपने घर का बादशाह बन जाता हूँ।'
- अभिषेक आर्यन