बेरोजगारी की कलम से प्रधानमंत्री को खत - हल्लाबोल


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बेरोजगारी की कलम से प्रधानमंत्री मोदी को खत

प्रिय मुदी जी,

बेरोजगारी की कलम से आपको ये खत लिख रहा हूँ। ऐसे समय में जब देश का हरेक युवा आपके बहुचर्चित कार्यक्रम मन की बात पर अपना प्री और मेंस क्वालीफाई लात, घुसा चला रहा है और आप उत्तर देने के बजाय कमेंट्स के ऑप्शन बंद कर रहे हैं। इससे साफ पता चलता है कि आपके मन में युवाओं के लिए जो अपार प्रेम, वात्सल्य और रोजगार सृजन संवेदनशीलता है वो अन्य किसी भी देश के प्रधानमंत्री में नहीं होगी।

जब एक लोकतांत्रिक देश में लोक की आवाज को ही तंत्र दबाने लगे या अनसुना करने लगे तो मन करता है ऐसे छप्पन इंचीय सीनाधारक पिरधानमंत्री के गोड़ के आगे तिरंगा अगरबत्ती खोंस कर माचिस मार दिया जाए।

आप एक विकाशशील देश के प्रभावशाली राजा हैं। और बेचते बेचते कितना कुछ बेचे जा रहे हैं। चाय, बैंक, रेल, प्लेटफॉर्म, पेट्रोलियम, एंटीबायोटिक, पावर कॉर्पोरेशन, नौकरियाँ.....अब बस कीजिये सर। 

एक बार उस किसान बाप के बारे में भी सोचिये जिसके खाते में आप फसल बीमा योजना का रकम भेजते हैं। गरीबों के लिए राशन में पाँच किलो गेंहूँ और मसूर भेजते हैं। आपको पता भी है आपके ही भेजे गेंहूँ का आटा और चौर का भात खाकर युवा इनकम टैक्स में भर्ती होने के लिए तैयार है, लेकिन नौकरियाँ ठप्प है। 

कुछ नहीं तो उस बेटी के बारे में सोचिये जो आपके ही भेजे हुए किसान सम्मान निधि राशि से रेलवे का फॉर्म भर कर 2 साल से परीक्षा के इंतजार में बैठी है। और पिछले तीन दिनों से लगातार यही सवाल पूछा जा रहा है। नौकरी, परीक्षा और रिजल्ट?

किसी का फॉर्म नहीं आया तो किसी का प्री नहीं हुआ, किसी का प्री हुआ तो मेंस का डेट नहीं, मेंस हुआ तो वेरिफिकेशन नहीं, वेरिफिकेशन हुआ तो जॉइनिंग नहीं। देश नहीं बिकने दूँगा कहते कहते आप कितना कुछ किराने की दुकान पर धर आये ये कोई चाय वाले से ही पूछ लीजिए, थोड़ी शर्म आएगी। और अगर इन सब बिंदुओं पर सवाल करना ही देशद्रोही हो जाना है तो देश के करोड़ों युवाओं की तरफ आपको राष्ट्रभक्त होने का सलाम है। ये लीजिए फीता और नापिये अपना सीना, 56 तो हरगिज नहीं। सब ढकोसला है। जो युवाओं की आवाज ही न सुन सके ऐसी सरकार बहरी है।

जय हो।

अभिषेक आर्यन
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