पंचायत वेब सीरीज की रिंकी को एक वायरल खत : Panchayat Season 2 Review
प्यारी रिंकी,
मुझे परधान और उप परधान का डर नहीं पर सचिव जी से क्षमा सहित तुम्हें ये खत लिख रहा हूँ। हम पुरुष बस कहने को बरियार हैं पर सच पूछो तो भीतर से बहुत ही कमज़ोर हैं।
अपने काम और जीवन से थका, हारा और परेशान पुरुष बस यही चाहता है कि कोई ऐसी महिला हो जो सिर्फ ये कह सके कि "ज्यादा टेंशन नहीं लीजिये सब ठीक हो जाएगा" और खूबसूरत बात ये है कि उसके उतने कहने भर से स्थितियाँ ठीक भी होने लग जाती है।
रिंकी, तुमने भी वही किया। बातों में बात फिर चुप्पियों में बात। हम प्रेम को इतनी तेज गति से जीना चाहते हैं कि उसके सूक्ष्म कणों को जीना भूल जाते हैं।
पर तुम इसके ठीक उल्टे हो। हाथ में स्मार्टफोन और स्मार्टफोन में "सचिव जी" लिखकर नम्बर सेभ करना बतलाता है कि हम उनलोगों में से हैं जो धीमी आँच वाली खीर खाना पसंद करते हैं। क्योंकि हमें पता है कि तेज गति आँधी, तूफान और तबाही ला कर सब बर्बाद कर देगी।
खूबसूरत तो ये भी रहा जब सचिव जी ने तुम्हारा नम्बर "रिंकी परधान जी" के नाम से सेभ किया। बात छोटी थी, छोटा सा मैसेज था पर इस बात और मैसेज के बीच जो दोनों के चेहरे पर हल्की मुस्कान ठहरी वो हम सबको भी ठहरा दिया।
मन तो वहाँ भी ठहरा जब सचिव जी तुम्हारे घर आये थे और तुमने हाथ हिलाकर 'हाय' किया। बदले में सचिव जी ने भी हाय किया। पर उसी समय बिकास ने भी एक 'हाय' परहलाद चा को किया जो बतला रहा था कि देख रहें हैं न परहलाद चा कैसे हाथ हिला रहे हैं दोनों...कुछ तो चल रहा है।
दुनिया जालिम है रिंकी, लोग एकदूसरे को प्रेम करते देखना पसंद तो करते हैं पर देखना नहीं चाहते। इसीलिए जो कुछ हिस्से आये उसे बिना सोचे समेटते चलना।
फिर बिकास की बातें याद आती है। जब बिकास कहते हैं "जानते हैं परहलाद चा ई अलगे तरह का प्यार होता है। जहाँ लड़का लड़की प्रेम में एक दूसरे को पागल कहता है। हम भी खुशबू को वैसे ही पागल कहते थे।
ख़ैर लिखने को क्या लंबा ही लिखता चला जाऊं पर अपनी टीम को बताना सबके काम बेहद अच्छे हैं। चाहे वो परधान हों, परधान पति हों, बिकास हो, विनोद हो या भूषण हो या अन्य किरदार।
ये पहली ऐसी सीरीज है जहाँ हर व्यक्ति अपने नायक होने की स्थिति में है। पर इन सबके बीच जो मन में विशेष जगह बना गये वो हमारे परहलाद चा थे। हमारे इसीलिए भी क्योंकि हम सबके बाद अब उनका कोई नहीं है।
रिंकी अंत दर्दनाक रहा। मन स्थिर और बेचैन हो चुका है, आँखें नम होकर घटनाओं को धुँधली और स्पष्ट दोनों एक साथ देख रही है। याद करो जिस तरह तुमने सचिव जी को हिम्मत दिया था, उसी तरह परहलाद चा को भी हिम्मत देना।
ताकि फिर से कोई दूसरा परहलाद रोते हुए ये न कहे कि "परधान जी आज बहुत अकेले पड़ गये हम" न ही कोई ये दुबारा कह सके कि "सांत्वना देने के लिए पूरी दुनिया होगी पर अपना परिवार नहीं होगा।"
हिम्मत इसलिए भी देना क्योंकि आप सबने पंचायत नहीं बनाया है, आपने परिवार बनाया है। हमसब फुलेरा के ग्रामवासी हैं। बाकी प्रधान जी तो परहलाद को अपना बेटा मान ही लिए हैं।
-अभिषेक आर्यन
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