बाबूजी हम नानीघर जाइब



गर्मी अपने चरम पे है। ऐसा लग रहा है कि निकोलस कोपरनिकस का हेलिओ सेंट्रिजम नामक सिद्धांत फेल होने को है। सूर्य अब केंद्र में नहीं रहा...मानो वो एक सीधी रेखा के सहारे पृथ्वी के करीब आना चाह रहा हो...यहाँ के सजीवों के साथ जानलेवा दोस्ती करना चाह रहा हो। एक दिन ये जानलेवा दोस्ती पृथ्वी को बिना चबाये ही निगल जाएगी।

गाँव में बिजली और पानी ठीक उतना ही है जितना कि राहुल गान्ही के खोपड़ी में बुद्धि और विवेक। चापानल का हाल मोमता बन्दरजी हो गया है। अपना हिम्मत हार बैठा है...दाहिने हाँथ से उसका मुँह बंद करके...उसके माथा में एक बाल्टी जन्मघुट्टी पिलाने के बाद...हैंडल को बीस बार चापियेगा तब जाकर चापानल अपना आँख, नाक, मुँह, कान खोलता है।

इधर गर्मी की छुट्टियाँ हो गई हैं। छुट्टियों में आप नानीघर तब तक नहीं जा सकते जब तक कि आपका 'समर हॉलीडेज' का गृहकार्य पूरा नहीं हो जाता। बेचारा गाँव का गुडुआ लिखना लिखते लिखते परेशान हो गया है। जीभ में अँगुली सटाते हुए पन्ना गिनता है...अभी सतरह पन्ना ही पूरा हुआ है...तेतालिस पन्ना और बाकी है।

नटराज कंपनी के इंच से पूरे हाथ का पसीना काछते हुए कहता है...

हैं साला...मास्टर सब...

28 दिन का गर्मी छुट्टी...70 दिन का H.W (होमवर्क) गदहा नियुत लाद देता है। 

''नहीं चाहिए हमको गर्मी छुट्टी'' कहते हुए चावल चुन रही माई के गियारी में पीछे से जाकर लिपट जाता है। माई भी उस पल का आनंद लेते हुए एक हाथ से बेटे का हाथ थाम लेती है और दूसरे से चावल चुनती है। 

(ये दुनिया का सबसे सुंदर और बहुमूल्य दृश्य होता है जब माँ चावल चुन रही होती है और उनका लाल...मदन गोपाल की तरह पीछे से उनकी गियारी में झूला झूल रहा होता है) 

थोड़ी देर में पता चलता है कि बाबूजी खेत से काम करके दुआरी पे आ गए हैं... तब तक मदन गोपाल के झूले का यूनिफार्म मोशन अंतिम साँस तोड़ चुका होता है। अर्थात बॉडी अब रेस्ट में है।

अगले ही पल गुडुआ खटिया पे बैठकर फिर से लिखना लिख रहा होता है। कभी दो लाइन वाली कॉपी में, कभी चार लाइन वाली कॉपी में। लिखते लिखते भावुक होकर पंखा पर ही लिख देता है ''बाबूजी हम नानीघर जाइब''

''अरे गुडुआ तनिक पँखा लाउ रे''

बाबूजी पँखा माँगते हैं और गुडुआ वहाँ से उठकर थके हारे...खाना खाते हुए बाबूजी को पंखा हौंकने लगता है।

(जब बेटा को बाबूजी से अपनी बात मनवानी हो तो यहीं पर बेटा सार्वाधिक आज्ञाकारी हो जाता है) 

आधा खाना खाने के बाद....बाबूजी उसके हाथ से पंखा ले लेते हैं औऱ कहते हैं...

''बहुत हो गैले जो पढ़ गन...गर्मी छुट्टी के टास बनो जा के''

बाबूजी जब खाना खाकर थाली में हाथ धो रहे होते हैं तब अचानक से उनकी नजर पँखे पर जाती है जिसपे लिखा होता है ''बाबूजी हम नानीघर जाइब''

(एक बाप भले ही आपको खूब डाँटे...पर अंदर से वो भी आपको बहुत प्यार करते हैं। सिर्फ माँ ही नहीं बाप भी आपको अंतर्मन से पढ़ते, बूझते और समझते हैं)

रात में सोते वक्त बाबूजी गुडुआ के माई के पेट पर हाँथ रखते हुए कहते हैं...तैयारी कर ला गुड्डू के माई अगला बीफे के तोहर नइहर चले के बा।
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छुट्टियाँ तो हैं ही। खूब घूमिये...परिवार संग समय बिताइए...पर इसी छुट्टी में से समय निकालकर अपने आसपास एक पेड़ जरूर लगाइए..नहीं तो एक दिन न गुडुआ रहेगा न ही गुडुआ के माई बाबूजी जी...न इस कहानी को कोई लिखने वाला...न ही कोई पढ़ने वाला।

जय हो।

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