'kamjor search engine or gaanw ka achaarupan' । कमजोर सर्च इंजन और गाँव का अचारुपन । गाँव की हिंदी देशी कहानी । village story hindi me । Abhishek Aryan Kahani । अभिषेक आर्यन कहानी ।
चित्र- मोहन संजू
जिंदगी प्रतियोगिता परीक्षा हो गयी है। सफल होने के लिए चार विकल्प में से एक सही जवाब चुनना ही पड़ेगा। अब तुक्का मारने का समय भी नहीं रहा... ना ही आप लुसेंट और स्पीडी पढ़कर रेलवे ड्राइवर और ट्रैक मैन बन सकते हैं। आपमें सर्जनात्मकता और बुद्धिमत्ता दोनों का होना आवश्यक है।
जिंदगी प्रतियोगिता परीक्षा हो गयी है। सफल होने के लिए चार विकल्प में से एक सही जवाब चुनना ही पड़ेगा। अब तुक्का मारने का समय भी नहीं रहा... ना ही आप लुसेंट और स्पीडी पढ़कर रेलवे ड्राइवर और ट्रैक मैन बन सकते हैं। आपमें सर्जनात्मकता और बुद्धिमत्ता दोनों का होना आवश्यक है।
माँ भले ही अनपढ़ है...उनको नहीं पता कि मोनो सोडियम ग्लूटामेट (MSG) भी कुछ होता है, लेकिन आज भी माँ जब तीन बोजाम अचार लगा कर छत पर रौदा में रख देगी तो...,नानीघर से लेकर मौसीघर, मौसीघर से लेकर फुआघर... सबको पता चल जाएगा कि ''परवतिया हीं अचार लग रहलै हैं''
हो सकता है कि शाम को छत पे अचार का बोजाम देखकर बगलवाली बाल में कंघी करते हुए आपसे पूछ लें ''तीन बोजाम अचार लगैलु हो..! नइहर भी भेजबू का गुड्डू के माई'' और गुड्डू के माई गुडुआ को दुलारते हुए कहेंगी हाँ दीदी ''पिछला बार तो तबियते खराब रहलै...त कहाँ अचरबो लगा पैलिये हल...अबरी लगैते हियै''
इधर देर शाम को बाबूजी खेत से काम करके आतें हैं। तब गुडुआ का माई उनके हाथ में चाय देते हुए पूछ लेती हैं कि ''कुछ पैसा-कौड़ी है..? है तो दहो...तेल माँगवावे ले है,...कैसे अचार लगतै अबरी''
और इधर बाबूजी गुडुआ को कहते हैं ''ए गुड्डू बाबू...हमार कुरता में से 150 निकाल ला और तेल ला के माई के दे दिहो'' पैसा निकालते हुए गुड्डू बाबू पिताजी से कहता है...''बाबूजी पंद्रह रुपया और दहो ना... हमरो गणित के कॉपी लेवे ला है''
उधर से माई कहेगी ''अरे गुडुआ परसो दिनवा ही न कॉपी खरीदने रे....फिर आज कॉपी'' गुडुआ नाक फुलाते हुए कहता है ''माई उ दिन हिंदी के कॉपी ख़रीदले हलियै न...आज गणित के खरीदे ला है''
तब बाबूजी गुडुआ के हाथ में बीस रुपया देकर कहते हैं ''ई ला गुड्डू बाबू पाँच रुपया के बिस्कुट भी खा लिहा'' इतना सुनते ही गुडुआ का मुरझाया चेहरा फिर से भाजपाई कमल की तरह खिल उठता है।
कल फिर बाबू जी खेत जाएंगे...गुड्डू बबुआ कोचिंग जाएंगे...और माई अकेले गीत गुनगुनाते हुए, नइहर परिवार के लोगों को याद करते हुए आम में मसाला, तेल और नमक मिलाएगी, उसे धूप में रखेगी। सब हो जाने के बाद उसे एकटक्के गौर से देखेगी और मुस्कुरायेगी।
ये होता है आत्मीयता और ऐसा प्रेम व्यवहार अब सिर्फ गाँव को ही नसीब है, अपवाद में कुछ शहर को भी। वरना आप जीवन भर निलोन्स और पतंजलि के अचार में घर परिवार, फुआ, मौसी, ननद, भौजाई के हाथ का स्वाद खोजते रह जाएंगे, पर वो आत्मीयता और घनिष्ठता नहीं मिलेगी। ये गाँव का अचारुपन है।
गूगल और यूट्यूब दुनिया भर के किताब, देश -विदेश की जानकारी भले ही दे दे...पर ये तकनीक कभी भी आपको पारिवारिक सुख नहीं दे सकता। इसका सर्च इंजन अभी इतना ताकतवर नहीं हुआ जो बता दे कि साठ वर्ष के उम्र में एक बाप बेटी के हाथ बने अचार का स्वाद किस चाव से चखता है।
(उनके लिए जो MSG के बारे में नहीं जानते-- मोनो सोडियम ग्लूटामेट किसी भी तरह के खाने में एक स्पेशल फ्लेवर ले आता है। यही वजह है कि खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए इसे डाला जाता है। इसका स्इस्तेमाल पैक्ड फ़ूड आइटम्स के साथ किया जाता है। अभी कुछ दिन पहले ही मैग्गी मिलना बंद हो गया था क्योंकि कंपनी इसमें MSG और लेड मिलाती थी।)