फ़ेसबुकिया चरस और कोसी कहर (कहानी बाढ़ की)


Face app के आ जाने से फेसबुक पर बहार ही बहार है। ये कोई app नहीं बल्कि जवान को बूढ़ा बनाने वाली एक प्रदूषण मुक्त मशीन है। एकदम एकोफ़्रेंडली। इधर से कच्चा माल के रूप में अपनी रसदार जवानी डालिये उधर से अंतिम उत्पाद के रूप में बूढ़ादार जवानी निकालिए। इस क्रांति में फेसबुक के सारे कूल डूड्स लहालोट हैं। आंटियाँ अपने भौं सिकोड़ते हुए दूसरी आंटी से कह रही हैं 'हे शालिनी काश हमलोगों के लिए भी ऐसा कोई मशीन होता जो अंतिम उत्पाद के रूप में जवानी को वापस ला देता'
उधर से दूसरी आंटी अपने होठ को हल्का ऊपर उठाते हुए कहती है 'हाँ दीदी तब न हमलोग भी फेसबुक पर चरस बोते' 
उनके लिए मार्केट में अभी तक ऐसा कोई मशीन आया ही नहीं है। ये डिजिटल इंडिया ने महिलाओं के साथ साथ सौंदर्य पक्षपात किया है। देश के नेताओं को इस पक्षपाती क्रिया के लिए कड़ी निंदा करनी चाहिए। 

इधर कर्नाटक का राजनीतिक नाटक चरम पे है। कौन नेता कौन पार्टी में घुस रहा है, कौन किस पार्टी से निकल रहा है कुछ थाह पता नहीं चल रहा है। इनपुट आउटपुट सब हौचपोच हो गया है। इस संकुलित क्रिया से पता चलता है कि इस देश के नेता विश्व के सबसे बड़े नाटकबाज हैं। उनके दोनों हाथों में एक एक डुगडुगिया पकड़वा देनी चाहिए। माचिस की डिबिया दे देनी चाहिए। फिर वो लोग सड़क, चौराहे पर खुद काला मंजन बेच लेंगे।

भारत ने वर्ल्ड कप हारा, कई लोगों का भूख, नींद, चैन सब उड़ गया। कइयों को हार्टअटैक आ गया। कई लोग क्रिकेट मैच देखने से सन्यास ले लिए। कुछ ने भारतीय टीम का मनोबल बढ़ाया। कुछ लोग धोनी पे अपना प्यार लुटाए। भारत के हारने के बाद देश का दूसरा चन्द्र मिशन 'चंद्रयान-2' पे गर्व था। पर इसके क्रायोजेनिक इंजन में तकनीकी खराबी के कारण निर्धारित समय से ठीक 56 मिनट पहले स्थगित कर दिया गया। अब 22 जुलाई के आसपास इसे छोड़ने की तैयारी की जा रही है। ये जिम्मेदारी होती है, ये राष्ट्राभिमान होता है। 978 करोड़ का प्रोजेक्ट और भारत का दूसरा चन्द्र मिशन बतलाता है कि देश के लिए कैसे काम किया जाता है, जिम्मेदारी क्या चीज होती है। 

यहाँ के जालीदार नेताओं को भी थोड़ी सी जिम्मेदारी ISRO से सीख लेनी चाहिए। उन्हें अपनी अँधी हो चुकी आँख खोलनी चाहिए। उन्हें देखनी चाहिए कि उनके क्रायोजेनिक इंजन में कहाँ गड़बड़ी है। बिहार में किस तरह से देश का भविष्य बाढ़ में बह रहा है। बच्चे मछली की तरह जाल से निकल रहे हैं, लोग चूहे खा रहे हैं, मर रहे हैं। उत्तरी बिहार अपने घुटनों पे आ गयी है। राजा जी थोड़ी सी मनुष्यता तो बचा लीजिए। कुछ नहीं तो हिंदुत्व के नाम पे ही बचा लीजिए। नहीं तो अंतिम उपाय गंगाजल ही होगा।

और सबसे आखिरी बात कि असम में बाढ़ पीड़ितों के राहत के लिए विदेश से या विश्व बैंक से अनुदान या ऋण मिल जाएगा, अभी ओड़ीसा को भी मिला, लेकिन दुखद है बिहार पे अभी तक टॉर्च ही नहीं जलाया गया है, अनुदान और ऋण तो दूर की बात है। आज केरल में बाढ़ आ जाए तो अंधभक्त लोग फेसबुक पे marked safe का स्टेटस लगाकर खुद को सुरक्षित महसूस कर लेंगे, लेकिन ये बिहार है। यहाँ के मिडिया, पत्रकार, लेखक सब चुप रहेंगे। यही विडंबना है बिहार की, इस देश की। जय हो ऐसी व्यवस्था की जहाँ राजा भोज भात खाये और प्रजा पानी मे डूब डूब के चूहा।

याद रहे जिस देश की इकॉनमी आप पाँच ट्रिलियन बनाने जा रहे हैं उस देश की व्यवस्था कोसी में बह रही है। कुछ तो शर्म कीजिए। घोर के एकदम मटियामिलाप ही कर दीजिएगा का। 

जय हो। 

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