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मचान टीम की ग्रुप फ़ोटो पटना बतकही के दौरान |
कल कार्यक्रम से लौट ही रहा था कि मेरे एक अंग्रेजवाद मित्र ने पूछ लिया। भैया व्हाट इज मचान? तभी बगल का एक लड़का कह दिया भोजपुरिया गाना नहीं सुनते हैं क्या विलायती बाबू?
मन तो किया उसके मुँह में विलायती पिज़्ज़ा, बर्गर ठूंस के उसके छोटी आंत में एक युद्ध करवा दूँ। लेकिन नहीं...एक कलम पकड़ने वाला छात्र ये सब करेगा तो...क्रांतिकारी आदमी क्या करेगा? पर ये भी क्या बात है कि कलम के गाढ़े स्याही के आगे बड़का बड़का कट्टा और 47 अपना रक्त चाप नापने लगता है।
मचान क्या है। मचान उ बिछौना नहीं है जहाँ खेसरिया और काजल का कोई अश्लील अंदाज पर चार-पाँच भोजपुरिया एलबम शूट हो जाए। जहाँ सरसों के सगिया से लेकर कूलर कुर्ती में आते आते शरीर का सारा ताकत पानी की तरह सूख जाए, बल्कि मचान युवा पीढ़ी के खेत में हिंदी का धान रोप कर खेत के ही बगल में बाँस फराटी का बिछौना लगा लेना ही मचान है। उसी खेत में अपनी आँचलिक भाषाओं को देखना, बोलना, सुनना, सुनाना, समझना और अपने आप को तलाशना ही मचान है। मचान कैल्शियम का गोली है जब सरकार के पास कैल्शियम का गोली खत्म हो जाता है तब मचान गरीब परिवारों के हड्डी में कैल्शियम देता है, आदमी के फिमर को मजबूती दे उसे खड़ा रहने की शक्ति और हिम्मत देता है। जब बिहार के ठुशासन बाबू का चमकी बुखार के चमक से आँख चोंधरा जाता है तब मचान उन सैकड़ों, हजारों भारत के भविष्य को एंटीबायोटिक के रूप में cefixim देकर उन्हें जिंदगी देता है, भारत के भविष्य के चेहरे पे मुस्कान देता है, हँसी देता है।
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डार्क हॉर्स और औघड़ के लेखक नीलोत्पल मृणाल |
कार्यक्रम सफल रहा। कार्यक्रम एक प्लेन मिरर की तरह था। जितना मोहब्बत बाँटा जा रहा था उतना ही समेटा जा रहा था। शुक्रिया रजनीश सर का जिन्होंने अपना घर समझकर हमलोगों को बुलाया, बैठाया और प्यार का नाश्ता दिया, मचान टीम का, साहित्य युवा अकादमी से पुरस्कृत लेखक नीलोत्पल मृणाल का, दैनिक जागरण रजत भैया का, डॉ आकांक्षा का जिन्होंने सिर्फ एक कार्यक्रम ही नहीं किया और करवाया बल्कि हजारों छात्रों के मध्य मस्तिष्क में अपनी मिट्टी की भाषा और लड़ने की क्षमता को धान, गेंहूँ की तरह रोपा। कल जो पटना की धरती पर प्रतियोगी छात्रों के बीच हुआ वो मेरी जानकारी में शायद पहली बार हो रहा था कि कोई अपने ही प्रदेश का व्यक्ति अपनी ही भाषा में अपने ही लोगों को पतरका पिन के चार्जर से हिम्मत और हौसला, दे रहा था। वरना यहाँ के छात्र आज तक स्पीडी, प्लेटफार्म, लुसेंट और घटनाचक्र से ही हिम्मत और हौसला समेटते आ रहे थे। अच्छा लगा कि आपने औरों की तरह काजल राघवानी और खेसरिया को नहीं बुलाया। शुक्रिया उन सभी मित्रों का जो वहाँ उपस्थित थे।
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एक साधारण कलम को पकड़ कर चलने वाला छात्र : अभिषेक आर्यन |
आभार नीलोत्पल मृणाल बड़े भैया का जिन्होंने अपनी रडार से मुझ जैसे साधारण कलम को हजार की भीड़ में, तीस फुट की दूरी पर पहचाना। मेरे माथे पे हाँथ फेरते हुए मोहब्बत से लबरेज किया। जिन्होंने कहा कि भाई अभिषेक हर जगह झंडा गाड़ें। जिन्होंने कहा कि अब बस फोड़ दो, वक़्त तुम्हारा है। जिन्होंने कलेजे से लगाकर अथाह मोहब्बत दिया।
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प्रेमचंद रंगसाल में औघड़ का मंचन होते वक़्त की एक झलक |
एक बार पुनः मचान टीम को बधाई। आगे के लिए शुभकामनाएं। ईश्वर आपकी टीम को इतनी हिम्मत देते रहे कि आपलोग अपने प्रदेश के गरीब, दुखिया, पीड़ित, बीमार इंसान को अपने मचान पे सुलाकर इलाज करते रहें। गमछा से उनका चेहरा पोंछ उनको दुलारते रहें। बस यही कहूंगा आपलोग देश के सबसे ताकतवर एंटीबायोटिक और एनाल्जेसिक हैं। सरकार और आयोग को थोड़ी बहुत मानवता आपसब से सीख लेनी चाहिए।
जय हो। मचान जिंदाबाद। यथार्थ जिंदाबाद। औघड़ जिंदाबाद।