पटना छात्र जीवन और रक्षाबंधन की छुट्टी

पटना छात्र जीवन और रक्षाबंधन की छुट्टी


इधर शनिवार, रविवार, बकरीद, रक्षा बंधन और स्वतंत्रता दिवस सब लगले लगले पड़ गया है। आप पटना के किसी भी छात्र के दस बाई दस पढ़ाउनुमा रूम में घुस जाइये....हर जगह छुट्टियों का ही वातावरण है।

भैया आप कब घर जा रहे हैं। मेरा मैथ वाला कोचिंग में छुट्टी हो गया। अरे मेरा मंगलवार को पढ़ा के छुट्टी देगा। मेरा तो जीके में छुट्टी दे दिया है जी, इंग्लिश वाला भी कल तक दे ही देगा। ए भैया देखिये न मेरा मस्टरबा तो दस दिन पहिलये छुट्टी दे दिया है। 

साला यहाँ का मास्टर सब...रक्षाबंधन है पंद्रह को...अभिये से छुट्टी दे दिया है, बताइये कैसे सिलेबस पूरा होगा?

अरे क्या कीजियेगा भैया...यही सब होता है। पटना और पोटना। दोनों सिर्फ समानार्थी शब्द ही नहीं बल्कि क्रिया भी है। यहाँ हर कोई आपका काटने, लूटने के लिए ही है। बस जितना जल्दी हो यहाँ से निकल लीजिये। 

चौकी पर बैठा गुडुआ वयस्कता दिखाते हुए कहता है...हाँ भइया सहिये बोल रहे हैं। क़भी उ बुढ़वा हीं आटा खरीदने जाइये, साला 2 रुपया लौटा नहीं सकता...बड़ा प्यार से कहेगा 2 रुपया का टॉफ़ी ले लीजिये। मन त करता है टॉफ़ी खा कर प्लास्टिक उसके मुँह पर मार दें। साला बुढ़ऊ...उ क्या जाने हमारे बाबूजी के मेहनत का मोल। एक महीना में जितना का टॉफ़ी खिला देता है उतना में तो एक पैकेट धारा तेल खरदा जाये।

भक महाराज आपको धारा तेल का ही पड़ा है...देखिएगा इसी तरह मीठा लेते रहें न...तो डियाबिटीज जल्दिये घर पधारेगा। फिर तेल पर लहसुन रगड़ते रहिएगा। आयुर्वेदिक, अंग्रेजी में ही समय कट जाएगा।

उधर गाँव में...चाची अदहन में चउर डालते हुए चाचा से कह रही हैं...अजी बड़ी दिन से बबलुआ से बात नय होले हैं जी...तनिक फोनवा लगाहो तौ बुतरुआ रक्षाबंधन में भी अयते है कि नै। अभी गइयो दूध देते है, चार-पाँच दिन बुतरू रहतै त मन भर खइतै भी। 

अरे बेटा छुट्टी हो गेलौ कोचिंग में रे?...हो गेलौ तौ आ जो न रे, कत्ते दिन हो गेलौ रे।

इधर बेदाम का चटनी पीसते हुए फुआ भी कहेंगी...हाँ रे बबलुआ आ जो तनिक हमहुँ देख लैबो रे...पिछला बेर भी त नहिये हलें रे।

ठीक हौ माई...कल दोपहर में बस पकड़ के आ जैबौ। आज रात में ही घर के लिए हनुमान मंदिर से 2 किलो नैवैधम लड्डू ले आया है। 

इधर बबलुआ और बबलुआ जैसा लाखों लड़का अपना करेजी पार्टनर को सुप्रतिष्ठित सलाह देते हुए घर के लिए बस पकड़ लिया है...ए पार्टनर देखिये हम घर निकल रहे हैं, आप शाम को जाइएगा तो गैस का रेगुलेटर बंद करके जाइएगा। ठीक है मिलते हैं फिर। चाभी है न आपके पास। 

जो घर निकल गए वो माई, बाबूजी का आशीर्वाद और बहन का प्यार लेकर लौटेंगे। कई मित्र हैं जिनकी बहनें नहीं हैं। उनके घर से राखी के जगह फिर से 5000 का महीना ही आएगा। बाबूजी जी का मेहनत, माई का दुलार और और एक भरोसा आएगा। भरोसे में एक आशीर्वाद आएगा कि इस बार तो प्रमोदवा का bpsc हो ही जाएगा। बाबू प्रमोद भी दुनियादारी छोड़ अपने आप को झोंक दिये हैं... इस बार तो हर हाल में कुछ कर ही लेंगे। जीत ही लेंगे एक दिन लड़ते लड़ते। इस बार कुछ बनकर ही घर जाना है।

ये आत्मविश्वास बना रहे। आत्मविश्वास ही ईंधन है। छुट्टियां तो आते जाते रहेंगी। वक़्त दुबारा नहीं आएगा। ये वक़्त होता है कछुआ जैसों के लिए जिसमें हिम्मत और साहस होता है खरगोश को पीछा छोड़ देने की। ये हिम्मत बना रहे। वक़्त आपका ही है, बस फोड़ देना है।

फ़ोटो- महावीर मंदिर, पटना 

जय हो।
Previous Post Next Post