भवानी के वीरों ...उठा लो भुजा को
सत्यागिनी को मस्तक सज़ा लो
स्वाहा हो शत्रु...प्रचंड मचा दो!
शपथ का पथ वीर पथ, देश का पथ जीत पथ!
कदमों के ताल से, धूल का बादल सजा!
शत्रु के लहू से धरती का श्रृंगार कर,
देश पर प्रहार है, प्रहार कर, प्रहार कर!
घमंड कर! प्रचंड कर!
तांडव सा युद्ध कर, युद्ध कर भयंकर!
तानाजी फ़िल्म समीक्षा |
आज nayiwalistory पर अजय देवगन की नई फिल्म तानाजी की समीक्षा पढ़ते हैं। ( tanhaji movie review in hindi )
Tanhaji movie Review: Ajay Devgn, Saif Ali Khan’s Film is the Best VFX in Hindi film industry Till now
Tanahaji film review । तानाजी फ़िल्म समीक्षा हिंदी में
जरा सोचिए किसी फिल्म की शुरुआत इस तरह की ओजस्वी शब्दावली से सजे हुए, ऊर्जा से भरे और रक्त में उबाल ला देने वाले गाने से हो, तो वह फ़िल्म कितनी खास होगी, कितनी अहम होगी अपने वतन, अपनी माटी से प्रेम करने वाले हर इंसान के लिए!
और गाने की इन लाइनों के बाद साकेत टण्डन की जबर्दस्त आवाज में जब जब "रारारारा रारारारा रारारारा रा रा" बजता है, तब रोम रोम फड़क उठता है थियेटर में बैठे हर व्यक्ति का और मन करता है कि स्क्रीन के भीतर घुसकर मुगलिया सल्तनत को उखाड़ फेंकने में वीर मराठों का साथ दिया जाए!
और सोचिए मेरे ऊपर कितना जबर्दस्त प्रभाव पड़ा है इस फ़िल्म का, और इसकी बैकग्राउंड म्यूजिक का, कि मैं देखकर रूम पर आते ही गिटार लेकर बैठ गया और पाँच मिनट की मशक्कत के बाद वो म्यूजिक अपनी गिटार पर बजाकर ही दम लिया!
जी हाँ.... कुछ ऐसी ही भावनाएं मन में उमड़ती हैं तानाजी देखते वक़्त! और मैं सिर्फ अपनी ही बात नहीं कर रहा हूँ, बल्कि कल फ़िल्म देखकरआ आने के बाद कई ऐसे लोगों से फ़िल्म के बारे में देर तक चर्चा होती रही, जो देखकर आए थे...और यकीन मानिए, सब बस एक ही बात बोल रहे थे कि तुमने सजेस्ट किया, उसके लिए ढेर सारा थैंक यू....क्योंकि अगर बाद में फोन में या टीवी, लैपटॉप पर इस फ़िल्म को देखते तो थियेटर का अनुभव मिस करने का बहुत अफसोस होता!
थियेटर में सवा दो घण्टे की फ़िल्म के दौरान जब आपको हर दो मिनट में किसी डायलॉग पर, किसी पात्र की एंट्री पर या किसी वार सीन पर "जय भवानी" और "हर हर महादेव" के साथ साथ "शिवाजी महाराज की जय" के नारे सुनाई दें.....तो सोचिए वह फ़िल्म कितनी जबर्दस्त होगी! और क्या उबाल आया होगा उसे देखने गए हर एक शख्श की नसों में!
थियेटर का शोर सुनकर लगता था कि फ़िल्म यूपी में नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के किसी इलाके में देख रहा हूँ! वाकई, अद्भुत अनुभव था सबकुछ! एक तो ऐतिहासिक फ़िल्म, दूसरा फ़िल्म शिवाजी महाराज की उपस्थिति, और तीसरा अपने सबसे फेवरेट बॉलीवुड एक्टर की फ़िल्म थी यह, जिसे हर हाल में देखना ही था!
अब बात कहानी की नहीं करेंगे, कहानी पिछली पोस्ट में विस्तृत रूप में लिखी जा चुकी है! बात करते हैं एक्टिंग की......
"यह उस एक्टर की फ़िल्म है, जिसकी आंखें बोलती हैं......"
बचपन से अजय देवगन की फिल्में देखता आया हूँ और हमेशा उनके बारे में यही बोलता हूं कि इनकी आंखें बोलती हैं! आधा डायलॉग तो अजय देवगन सिर्फ अपनी आंखों से बोल देते हैं! इस फ़िल्म में भी चेहरे पर साफा बांधे उनकी इंट्री होती है और वहां भी पहले सिर्फ उनकी आंखें दिखती हैं! और क्या ग़जब की एंट्री थी वो! मुझे हमेशा याद रहेगी यह फ़िल्म, तानाजी के रूप में अजय की एंट्री के लिए भी!
अजय देवगन हट्टे कट्टे तानाजी के किरदार में एकदम दमदार लगे हैं! उन्हें देखते वक़्त एकदम यही लगता है कि वीर तानाजी भी ऐसे ही रहे होंगे! पूरी फिल्म भर अजय देवगन छाए रहे हैं... और ना सिर्फ अजय, बल्कि छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में शरद केलकर ने भी कमाल किया है! उनका चलना, उठना, बैठना, बोलना....सबकुछ हु बहु शिवाजी महाराज को देखने जैसा है!
और नग्न जनेऊधारी बलिष्ठ देह के साथ, महादेव का जलाभिषेक करते शिवाजी महाराज को देखकर यदि आपकी आंखें खुशी और गर्व से नम ना हुईं तो बताइएगा!
tanaji movie dialogue
"जिसके घर में बेटे के ब्याह के न्योते बांटे जा रहे हों, उसे हम मौत की होली खेलने का न्योता नहीं दे सकते!"
शरद केलकर से यह डायलॉग सुनना कमाल का अनुभव था!उनके बोलने का ढंग....जस्ट वाओ!
अजय देवगन और शरद जी की जोड़ी ने क्रमशः तानाजी और शिवाजी राजे के किरदार में कमाल तो किया ही है, साथ ही फ़िल्म का सबसे बड़ा सरप्राइज है सैफ अली खान की एक्टिंग! सैफ अली खान इस फ़िल्म में उदयभान राठौड़ के रूप में निगेटिव भूमिका में हैं और एक निगेटिव कैरेक्टर की सफलता इस बात से मापी जाती है कि आप फ़िल्म देखते वक़्त उससे कितनी नफरत कर पाते हैं! इस फ़िल्म में भी आपको बार बार सैफ से नफरत होगी, डर भी लगेगा और उदयभान की वीरता पर आप वाह भी करेंगे!
इसे ही कहते हैं अपनी भूमिका में खुद को खो देना! सैफ अली खान ने इस फ़िल्म में एक वीर योद्धा के साथ साथ एक सनकी और निगेटिव कैरेक्टर, दोनों को बखूबी निभाया है!फ़िल्म में उनके सनक भरे सीन्स पर आपको हँसी भी आएगी और कही आपको "हॉलीवुड का जोकर" याद आ गया, तो बताइएगा!
इन तीन मुख्य किरदारों के अलावां तानाजी की पत्नी के रूप में काजोल अच्छी लगी हैं! रियल लाइफ के पति पत्नी को इस फ़िल्म में पति पत्नी का रोल करते देखना बहुत अच्छा लगा! छत्रपति की माताजी के रूप में ........ ने भी प्रभावित किया है। औरंगजेब के रूप में सैक्रेड गेम्स वाले मैलकम भी जंचे हैं और उन्हें देखकर यही लगता है कि बस! औरंगजेब भी बिलकुल ऐसा ही रहा होगा! इन सभी मुख्य किरदारों के अलावां तानाजी के दोनों भाइयों की भूमिका निभा रहे एक्टर्स ने भी बढिया काम किया है! कमल के रूप में, नेहा शर्मा का किरदार छोटा है और फ़िल्म में उनके लिए कुछ खास नहीं है!
फ़िल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा सा धीमा है,पर मुझे लगता है वह कहानी की मांग है!अब एकाएक क्लाइमेक्स तो नहीं दिखा सकते न, तो कहानी बुनना जरूरी होता है!
फ़िल्म की एक और यूएसपी है इसकी म्यूजिक! मतलब म्यूजिक तो एकदम रोंगटे खड़े कर देने वाला है और खासकर जव फ़िल्म की मेन थीम "रारारारा रारारारा...." जब जब बजती है, तब तब आपकी भुजाएं स्वतः फड़कने लगती हैं!
इसके अलावां मां भवानी और "शंकरा रे शंकरा" वाला गाना भी अच्छा है!
कहानी के नैरेशन के लिए संजय मिश्रा जी की आवाज एकदम परफेक्ट लगी है और कही कोई कमी नहीं छोड़ती!
कुछ अपने दिल की बात.......(tanaji movie review)
फ़िल्म मेरी उम्मीद से भी अच्छी निकली। और इसे देखकर जो संतुष्टि मिली है, वो मैं शब्दों में बता नहीं सकता। महीनों बाद एक परफेक्ट बॉलीवुड फिल्म देखने को मिली है। इस फ़िल्म ने 2017 से 2020 तक इंतजार तो कराया, पर फल भी बहुत मीठा दिया है।
एक खाडिय यह भी कि फ़िल्म ने कहानी के साथ काफी हद तक न्याय किया है और उस जमाने मे जो, जैसा भी था, उसे हु बहु दिखाया है। अक्सर बॉलीवुड अपने आकाओं के इशारे पर चलता है और एक कौम विशेष को उदारवादी दिखाने की परंपरा पर चलता आया है, पर खुशी होती है इस बात को देखकर की अभी भी अजय देवगन, अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम जैसे अभिनेता बचे हैं, जो सच को सच की तरह दिखाने का दम रखते हैं। इस साल के अंत में अक्षय की "पृथ्वीराज" आने वाली है, उम्मीद है कि अजय की तरह वह भी एक निर्भीक फ़िल्म बनाएंगे।
दूसरी बात यह कि इस फ़िल्म में इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश नहीं किया गया है, जो कि बहुत सुखद है। मैंने पहले ही लिखा था कि फ़िल्म के निर्देशक "ओम राउत" जो कि स्वयं मराठी हैं, इस वजह से फ़िल्म से उम्मीदें काफी थीं और फ़िल्म उसपर पूरी तरह खरी उतरी! बल्कि बहुत से सरप्राइज भी अपने साथ लेकर आई!
एक छोटी सी कमी का उल्लेख करना चाहूंगा, और वो यह कि हम सब बचपन से कहानियों में पढ़ते, सुनते आए हैं कि जब शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने आगरा में कैद कर लिया, तब वह लड्डू की टोकरी में छुपकर बाहर आए थे।मुझे उम्मीद थी कि फ़िल्म में यह सीन जरूर होगा, लेकिन यह सीन नहीं था। सिर्फ संजय मिश्रा जी की आवाज में बस एक लाइन में यह घटना सुना दी गई है।अगर वह सीन डाला गया होता तो फ़िल्म में चार चांद लग जाते।
लेकिन कोई बात नहीं, अब जब वीर तानाजी पर फ़िल्म बन गई है और इतना अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है तो वह दिन दूर नहीं जब हमें छत्रपति शिवाजी राजे पर भी एक जबर्दस्त फ़िल्म देखने को मिलेगी!और मेरी यह व्यक्तिगत इच्छा है कि उस फिल्म में भी शिवाजी महाराज की भूमिका शरद केलकर ही करें, क्योंकि जब आप तानाजी देखकर आएंगे, उसके बाद शरद के अलावां किसी और को शिवाजी महाराज की भूमिका में स्वीकार करना आपके लिए कठिन हो जाएगा!
और भी कहने को बहुत सी बातें हैं...जो आगे भी लिखी और कही जाती रहेंगी! अभी बस यह कहना है कि मैं तो देख आया, आप भी जाइए और पुरी फैमिली के साथ देखकर आइये, सिंगल हैं, तो दोस्तों के ग्रुप के साथ देखकर आइये और हमारे एक गुमनाम नायक की दास्तान को करीब से महसूस कीजिए थियेटर में! हमारे गौरवशाली अतीत को महसूस कीजिए तीनों विमाओं में!
देखिए ताकि हमारा इतिहास अक्षुण्ण रहे!
देखिए ताकि ऐसी और भी फिल्में बनती रहें!
और देखिए, ताकि आपके बच्चे और हमारी भावी पीढ़ी, अपने वास्तविक नायकों को पहचान सके!
हर हर महादेव!
छत्रपति शिवाजी महाराज की जय!
वीर तानाजी मालुसरे की जय!
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युवा कलमकार : आशीष शाही
चित्र : वेदांता
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सिनेमा