Phanishwar Nath Renu - फणीश्वरनाथ रेणु : पंचलाइट का अंश


(Phanishwar Nath Renu : फणीश्वरनाथ रेणु : पंचलाइट का अंश) Phanishwar Nath Renu : जिन्होंने गाँव देहात की मिट्टी को साहित्य का चंदन बनाया

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प्रसिद्ध लेखक Phanishwar Nath Renu के बारे में:-

फणीश्वरनाथ रेणु जन्मदिवस : 4 मार्च 1921

आँचलिकता शब्द आते ही फणीश्वरनाथ रेणु (Fanishwarnath Renu) का नाम दिल-दिमाग दोनों में आ जाना हम सबके लिए हिंदी-साहित्य का उपहार है। इनका जन्म बिहार में और शिक्षा बिहार और नेपाल में हुई। स्वतंत्रता संग्राम और नेपाल आंदोलन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इनको प्रेमचंद की परम्परा को आगे बढ़ाने लिए भी जाना जाता है। फणीश्वरनाथ रेणु की साहित्यिक-परिचय की बात करें तो, विश्व प्रसिद्ध उपन्यास मैला आँचल के लिए इन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनकी रचना तीसरी कहानी पर फ़िल्म बनी, जो बेहद चर्चित हुई। 

उपन्यास के साथ-साथ फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियाँ भी अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। लाल पान की बेगम, पंचलाइट आदि अनेक कहानियों ने साहित्य को विशेष तरीके से समृद्ध किया। आज इनके जन्मदिवस पर नई वाली स्टोरी इन्हें नमन करती है। 

फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी (प्रसिद्ध रचनाएँ):-

पढ़िये फणीश्वरनाथ रेणु की लिखी पंचलाइट का अंश - 

पिछले पन्द्रह दिनों से दंड-जुरमाने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में। गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं। हरेक जाति की अलग-अलग सभाचट्टी है। सभी पंचायतों में दरी, जाजिम, सतरंजी और पेट्रोमेक्स हैं-पेट्रोमेक्स जिसे गाँववाले पंचलाइट कहते हैं। 

पंचलाइट खरीदने के बाद पंचों ने मेले में ही तय किया-दस रुपए जो बच गए हैं, इससे पूजा की सामग्री खरीद ली जाए-बिना नेम-टेम के कल-कब्जेवाली चीज़ का पुन्याह नहीं करना चाहिए. अंग्रेजबहादुर के राज में भी पुल बनाने से पहले बलि दी जाती है।


मेले से सभी पंच दिन-दहाड़े ही गाँव लौटे सबसे आगे पंचायत का छड़ीदार पंचलाइट का डिब्बा माथे पर लेकर और उसके पीछे सरदार दीवान और पंच वगैरह। गाँव के बाहर ही ब्राह्मणटोले के फुंटगी झा ने टोक दिया-कितने में लालटेन खरीद हुआ महतो? 

देखते नहीं हैं, पंचलैट है! बामनटोली के लोग ऐसे ही ताब करते हैं। अपने घर की ढिबरी को भी बिजली-बत्ती कहेंगे और दूसरों के पंचलैट को लालटेन! 
टोले-भर के लोग जमा हो गए. औरत-मर्द, बूढ़े-बच्चे सभी काम-काज छोड़कर दौड़े आए, चल रे चल! अपना पंचलैट आया है, पंचलैट! 

छड़ीदार अगनू महतो रह-रहकर लोगों को चेतावनी देने लगा-हाँ, दूर से, ज़रा दूर से! छू-छा मत करो, ठेस न लगे! 

सरदार ने अपनी स्त्री से कहा, साँझ को पूजा होगी जल्दी से नहा-धोकर चौका-पीढ़ी लगाओ।

टोले की कीर्तन-मंडली के मूलगैन ने अपने भगतिया पच्छकों को समझाकर कहा, देखो, आज पंचलैट की रोशनी में कीर्तन होगा। बेताले लोगों से पहले ही कह देता हूँ, आज यदि आखर धरने में डेढ़-बेढ़ हुआ, तो दूसरे दिन से एकदम बैकाट! 

औरतों की मण्डली में गुलरी काकी गोसाईं का गीत गुनगुनाने लगी। छोटे-छोटे बच्चों ने उत्साह के मारे बेवजह शोरगुल मचाना शुरू किया। 

सूरज डूबने के एक घंटा पहले से ही टोले-भर के लोग सरदार के दरवाजे पर आकर जमा हो गए-पंचलैट, पंचलैट! 

पंचलैट के सिवा और कोई गप नहीं, कोई दूसरी बात नहीं। सरदार ने गुड़गुड़ी पीते हुए कहा, दुकानदार ने पहले सुनाया, पूरे पाँच कौड़ी पाँच रुपया। मैंने कहा कि दुकानदार साहेब, यह मत समझिए कि हम लोग एकदम देहाती हैं। बहुत-बहुत पंचलैट देखा है। इसके बाद दुकानदार मेरा मुँह देखने लगा। बोला, लगता हैं आप जाति के सरदार हैं! ठीक है, जब आप सरदार होकर खुद पंचलैट खरीदने आए हैं तो जाइए, पूरे पाँच कौड़ी में आपको दे रहे हैं।
दीवानजी ने कहा, अलबत्ता चेहरा परखनेवाला दुकानदार है। पंचलैट का बक्सा दुकान का नौकर देना नहीं चाहता था। मैंने कहा, देखिए दुकानदार साहेब, बिना बक्सा पंचलैट कैसे ले जाएँगे! दुकानदार ने नौकर को डाँटते हुए कहा, क्यों रे! दीवानजी की आँखों के आगे धुरखेल करता है दे दो बक्सा! 


टोले के लोगों ने अपने सरदार और दीवान को श्रद्धा-भरी निगाहों से देखा। छड़ीदार ने औरतों की मंडली में सुनाया-रास्ते में सन्न-सन्न बोलता था पंचलैट! 

लेकिन ऐन मौके पर लेकिन लग गया! रूदल साह बनिये की दुकान से तीन बोतल किरासन तेल आया और सवाल पैदा हुआ, पंचलैट को जलाएगा कौन! 

यह बात पहले किसी के दिमाग में नहीं आई थी। पंचलैट खरीदने के पहले किसी ने न सोचा। खरीदने के बाद भी नहीं। अब, पूजा की सामग्री चौक पर सजी हुई है, कीर्तनिया लोग खोल-ढोल-करताल खोलकर बैठे हैं और पंचलैट पड़ा हुआ है। गाँववालों ने आज तक कोई ऐसी चीज़ नहीं खरीदी, जिसमें जलाने-बुझाने का झंझट हो। कहावत है न, भाई रे, गाय लूँ? तो दुहे कौन? लो मजा! अब इस कल-कब्जेवाली चीज़ को कौन बाले? 

यह बात नहीं कि गाँव-भर में कोई पंचलैट बालनेवाला नहीं। हरेक पंचायत में पंचलैट है, उसके जलानेवाले जानकार हैं। लेकिन सवाल है कि पहली बार नेम-टेम करके, शुभ-लाभ करके, दूसरी पंचायत के आदमी की मदद से पंचलैट जलेगा? इससे तो अच्छा है पंचलैट पड़ा रहे। जिन्दगी-भर ताना कौन सहे! बात-बात में दूसरे टोले के लोग कूट करेंगे-तुम लोगों का पंचलैट पहली बार दूसरे के हाथ से! न, न! पंचायत की इज्जत का सवाल है। दूसरे टोले के लोगों से मत कहिए! 

चारों ओर उदासी छा गई. अँधेरा बढ़ने लगा। किसी ने अपने घर में आज ढिबरी भी नहीं जलाई थी। आज पंचलैट के सामने ढिबरी कौन बालता है! 

सब किए-कराए पर पानी फिर रहा था। सरदार, दीवान और छड़ीदार के मुँह में बोली नहीं। पंचों के चेहरे उतर गए थे। किसी ने दबी हुई आवाज में कहा, कल-कब्जेवाली चीज का नखरा बहुत बड़ा होता है। 

एक नौजवान ने आकर सूचना दी-राजपूत टोली के लोग हँसते-हँसते पागल हो रहे हैं। कहते हैं, कान पकड़कर पंचलैट के सामने पाँच बार उठो-बैठो, तुरन्त जलने लगेगा। 

पंचों ने सुनकर मन-ही-मन कहा, भगवान ने हँसने का मौका दिया है, हँसेंगे नहीं? एक बूढ़े के आकर खबर दी, रूदल साह बनिया भारी बतंगड़ आदमी है। कह रहा है, पंचलैट का पम्पू ज़रा होशियारी से देना! 

गुलरी काकी की बेटी मुनरी के मुँह में बार-बार एक बात आकर मन में लौट जाती है। वह कैसे बोले? वह जानती है कि गोधन पंचलैट बालना जनता है। लेकिन, गोधन का हुक्का-पानी पंचायत से बंद है। मुनरी की माँ ने पंचायत से फरियाद की थी कि गोधन रोज उसकी बेटी को देखकर सलम-सलम वाला सलीमा का गीत गाता है-हम तुमसे मोहोब्बत करके सलम! पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था। दूसरे गाँव से आकर बसा है गोधन और अब टोले के पंचों को पान-सुपारी खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया। परवाह ही नहीं करता है। बस, पंचों को मौका मिला। दस रुपया जुरमाना! न देने से हुक्का-पानी बन्द। आज तक गोधन पंचायत से बाहर है। उससे कैसे कहा जाए! मुनरी उसका नाम कैसे ले? और उधर जाति का पानी उतर रहा है। 

मुनरी ने चालाकी से अपनी सहेली कनेली के कान में बात डाल दी-कनेली! चिगो, चिध-SS, चिन! कनेली मुस्कुराकर रह गई-गोधन तो बन्द है। मुनरी बोली-तू कह तो सरदार से! 


के गोधन जानता है पंचलैट बालना कनेली बोली। 
कौन, गोधन? जानता है बालना? लेकिन सरदार ने दीवान की ओर देखा और दीवान ने पंचों की ओर। पंचों ने एकमत होकर हुक्का-पानी बन्द किया है। सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारनेवाले गोधन से गाँव-भर के लोग नाराज थे। सरदार ने कहा, जाति की बन्दिश क्या, जबकि जाति की इज्जत ही पानी में बही जा रही है! क्यों जी दीवान? 

दीवान ने कहा, ठीक है। 

पंचों ने भी एक स्वर में कहा, ठीक है। गोधन को खोल दिया जाए।
सरदार ने छड़ीदार को भेजा। छड़ीदार वापस आकर बोला, गोधन आने को राजी नहीं हो रहा है। कहता है, पंचों की क्या परतीत है? कोई कल-कब्जा बिगड़ गया तो मुझे दंड-जुरमाना भरना पड़ेगा। 

छड़ीदार ने रोनी सूरत बनाकर कहा, किसी तरह गोधन को राजी करवाइए, नहीं तो कल से गाँव में मुँह दिखाना मुश्किल हो जाएगा। 

गुलरी काकी बोली, ज़रा मैं देखूँ कहके? 

गुलरी काकी उठकर गोधन के झोंपड़े की ओर गई और गोधन को मना लाई. सभी के चेहरे पर नई आशा की रोशनी चमकी। गोधन चुपचाप पंचलैट में तेल भरने लगा।



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