'Mai tumse pyaar karta hu' | Poem by Deepak singh
मैं तुमसे प्यार करता हूँ : दीपक सिंह की कविताएं
1
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
जैसे मेरी दादी मुझसे करती है!
दादा दादी के बीच प्यार नहीं
महज शादी थी!
शायद मेरी माँ को भी मेरे पिता से प्यार नहीं था
इसलिए मर गई!
लेकिन मेरी दादी मुझसे बहुत प्यार करती है!
एकदम बुढ़िया है
चार आँख से भी नहीं देख पाती है
लेकिन मेरी टी शर्ट पहचान जाती है!
पिछले साल दादी के बाएं हिस्से में लकवा मार गया
चलने फिरने में दिक्कत है
मैं बहुत मना करता हूं
फ़िर भी मुझे सड़क तक छोड़ने आती है!
सब अपने घर हैं
और मैं दादी से दूर बहुत अकेला हूं
मैं दादी को फोन नहीं करता हूं
मैं रो दूंगा और मेरी दादी मर जाएगी!
मैं तुमसे प्यार करता हूं
जैसे मेरी दादी मुझसे करती है!
2
सड़क पार करते वक़्त
कितना कसकर मेरा हाथ पकड़ लेती थी तुम
और पार करते ही
कहती; तुम्हारे बिना एक सड़क पार नहीं होती
ज़िंदगी कैसे कटेगी!
अब जब भी मैं सड़क पार करता हूं
तो सोचता हूं
मेरे बिना जो ज़िंदगी काट रही हो
ये झूठ है या झूठ था
सड़क पार करते वक़्त मेरा हाथ कसकर पकड़ना!
3
जब भी मैं तुम्हें पढ़ता हूं
मुझे हर बार तुमसे इश्क़ हो जाता है!
तुम्हारे दुःख!
तुम्हारी उदासियां मुझे लुभाती है!
पास बुलाती है!
लेकिन
तुम कोई सकरी सड़क नहीं!
जो बनाऊं इसे तुम तक पहुंचने का माध्यम
तुम मेरी मंज़िल हो!
तुम्हारी देह पर पड़े समय के ज़ख्मों को
अपनी आत्मा पर पाता हूं!
चाहता हूं अपने अधरों को रख दूं तुम्हारी आंखों पर!
और पी लूं तुम्हारी पीड़ा!
मगर!
तुम मेरी ख़्वाब हो नायिका
और...
तुम्हें छूना अपराध है मेरे लिए!
4
वो एक समंदर थी
और...
मुझे तैरना नहीं आता था!
फिर वो
एक
नदी बन गई!
प्रेम में गहरे उतरते हुए मैंने जाना
दुनियां की तमाम सुखी हुई नदियां
प्रेम में
हारी हुई लड़कियां है!
-दीपक सिंह
मैं तुमसे प्यार करता हूँ : दीपक सिंह की कविताएं
1
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
जैसे मेरी दादी मुझसे करती है!
दादा दादी के बीच प्यार नहीं
महज शादी थी!
शायद मेरी माँ को भी मेरे पिता से प्यार नहीं था
इसलिए मर गई!
लेकिन मेरी दादी मुझसे बहुत प्यार करती है!
एकदम बुढ़िया है
चार आँख से भी नहीं देख पाती है
लेकिन मेरी टी शर्ट पहचान जाती है!
पिछले साल दादी के बाएं हिस्से में लकवा मार गया
चलने फिरने में दिक्कत है
मैं बहुत मना करता हूं
फ़िर भी मुझे सड़क तक छोड़ने आती है!
सब अपने घर हैं
और मैं दादी से दूर बहुत अकेला हूं
मैं दादी को फोन नहीं करता हूं
मैं रो दूंगा और मेरी दादी मर जाएगी!
मैं तुमसे प्यार करता हूं
जैसे मेरी दादी मुझसे करती है!
2
सड़क पार करते वक़्त
कितना कसकर मेरा हाथ पकड़ लेती थी तुम
और पार करते ही
कहती; तुम्हारे बिना एक सड़क पार नहीं होती
ज़िंदगी कैसे कटेगी!
अब जब भी मैं सड़क पार करता हूं
तो सोचता हूं
मेरे बिना जो ज़िंदगी काट रही हो
ये झूठ है या झूठ था
सड़क पार करते वक़्त मेरा हाथ कसकर पकड़ना!
3
जब भी मैं तुम्हें पढ़ता हूं
मुझे हर बार तुमसे इश्क़ हो जाता है!
तुम्हारे दुःख!
तुम्हारी उदासियां मुझे लुभाती है!
पास बुलाती है!
लेकिन
तुम कोई सकरी सड़क नहीं!
जो बनाऊं इसे तुम तक पहुंचने का माध्यम
तुम मेरी मंज़िल हो!
तुम्हारी देह पर पड़े समय के ज़ख्मों को
अपनी आत्मा पर पाता हूं!
चाहता हूं अपने अधरों को रख दूं तुम्हारी आंखों पर!
और पी लूं तुम्हारी पीड़ा!
मगर!
तुम मेरी ख़्वाब हो नायिका
और...
तुम्हें छूना अपराध है मेरे लिए!
4
वो एक समंदर थी
और...
मुझे तैरना नहीं आता था!
फिर वो
एक
नदी बन गई!
प्रेम में गहरे उतरते हुए मैंने जाना
दुनियां की तमाम सुखी हुई नदियां
प्रेम में
हारी हुई लड़कियां है!
-दीपक सिंह
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कविता