Panchayat Review : शानदार एक्टिंग और जबरदस्त कॉमेडी के साथ गाँव की कहानी

Panchayat TVF Series Review: रियल एक्‍टर्स की अदाकारी से सजी, मस्‍ती भरी ये देहाती कहानी


Panchayat Review : शानदार एक्टिंग और जबरदस्त कॉमेडी के साथ गाँव की कहानी

डिजिटल रिव्यू: पंचायत (वेब सीरीज)
कलाकार: रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, जितेंद्र कुमार, चंदन रॉय, फैसल मलिक, पूजा सिंह आदि
निर्देशक: दीपक कुमार मिश्र
सृजनकर्ता: टीवीएफ
ओटीटी: प्राइम वीडियो
रेटिंग: ****

हाल ही में  Amazon prime video पर रिलीज हुई Panchayat - पंचायत (webseries) लोगों के दिल में खास जगह बना रही है। वास्तव में ये पंचायत सीरीज (panchayat webseries) TVF द्वारा बनाई गई है। इसके नाम से ही अपने-आप जुड़ाव महसूस होने लगता है क्योंकि मैं और आप में से कई लोग देश के किसी न किसी पंचायत से आते हैं। पंचायत को कई लोग राजनीति में आने के लिए पहली सीढ़ी तौर पर देखते हैं।


पंचायत - panchayat की कहानी शुरु होती है एक महात्वाकांक्षी युवा जो कि दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहर में हमारी तरह ही रहता है और 6 डिजीट वाली सैलरी की चाहत रखता है। ग्रेजुएशन पूरा होते ही वो ग्रेड-सी के लिए अप्लाई करता है और उसे सरकारी जॉब मिल जाती है। लेकिन, उसका सपना होता है कि किसी मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने का.. मगर आजकल जॉब मिलना कितना मुश्किल है.. सब जानते हैं तो बेचारा मन मारकर सरकारी नौकरी करने पर मजबूर हो जाता है.. 

पहली पोस्टिंग यूपी के बलिया जिले के छोटे से गांव फुलेरा में होती है.. वो पंचायत सेक्रेटरी के तौर पर काम करने के लिए पहुंच जाता है.. कहानी इसी पंचायत से शुरू होती है और गावं की हर समस्या और जीवन को जीवंत बनाती है। पंचायत सेक्रेटरी अभिषेक त्रिपाठी का किरदार जितेन्द्र कुमार प्ले कर रहे हैं.. उन्होंने अपने लिमिट में किरदार को हर एपिसोड में बांध कर रखा है.. हालांकि, इस सीरीज में रघुवीर यादव (प्रधान-पति) और नीना गुप्ता (प्रधान) जैसे मंजे हुए कलाकार भी हैं.. जिन्होंने इसमें अपने पूरे एक्सपीरियंस को दिखाया है..


पंचायत में मुझे सबसे अच्छा किरदार लगा विकास (चंदन रॉय) Chandan Roy का.. पंचायत सेक्रेटरी के असिस्टेंस के तौर पर क्या शानदार रोल किया है.. बांकि के अन्य किरदार ने भी अपने रोल को पूरी निष्ठा से निभाया है। चंदन की डायलॉग डिलीवर काफी शानदार है.. उसमें गावं में रहने वाले किसी युवा की झलक मिल जाती है। अभिषेक त्रिपाठी एक शहरी युवा और विकास एक गांव का युवा, जब दोनों के बीच में संवाद होता है तो आपको वो काफी गुदगुदाएगा.. पंचायत वेब सीरीज में हम एक ऐसे गांव को देख सकते हैं तो कि वास्तविक में गावं है.. आप किसी भी यूपी-बिहार के गांव में जाइए.. बिल्कुल यही माहौल और यही सब परेशानी नजर आएगी।

गावं के वार्ड मेंबर द्वारा सोलर लाइट को पंचायत में लगवाने की जगह अपने घरों पर लगवाना हो या फिर भूत वाले अंधविश्वास के लिए गावं वालों का डर सब वास्तविक लगता है। आप सभी एपिसोड देखेंगे तो आपको ऐसा लगेगा कि आप सही में किसी गांव में हैं.. जो लोग कभी गावं नहीं देखे हैं.. उनको तो ये सीरीज जरूर देखना होगा.. गावं में रहने वाले लोग भी आजकल मॉडर्न हो गए हैं.. वो भी वॉट्सऐप ग्रुप, वीडियो कॉल जैसी तकनीक का इस्तेमाल करने लगे हैं.. गांव में बिजली की समस्या हो या फिर लोगों का रहन-सहन सब पसंद आएगा.. मैंने एक बार में ही पूरे 8 एपिसोड देख लिए.. आप भी देखिए.. लॉक डाउन की वजह से गावं नहीं जा पाए हैं तो गाँव की झलक मिल जाएगी।

पंचायत वेब सीरीज देखने के बाद ये बात तय है कि अगले कई दिनों तक इसके खुमार में रहिएगा। कहानी बलिया की और लहजा ऐसा कि हर एक शब्द दिल में उतरता चला जाए। डायरेक्टर,राइटर, प्रोड्यूसर और कास्टिंग समेत समूचे टीम की मेहनत शुरुआत से लेकर आठवें एपिसोड के आखिरी सेकेंड तक झलकती है। मेट्रो और मिलेनियम सिटी वाले इंडिया में भी यह पंक्ति “भारत को गांवों का देश कहा जाता है” क्यों और किस तरह से जीवंत है इसे दर्शाने में “पंचायत” पूरी तरह से कामयाब रही है।

पंचायती राज सिस्टम में महिला सशक्तिकरण को “प्रधान पति”, “सचिव पति” जैसे शब्दों से मिलने वाली चुनौती हो या, दहेज प्रथा, अंधविश्वास या यथार्थ और सपने के बीच की खाई, इसे जिस खूबसूरती से उकेरा गया है वह काबिले तारीफ है। सारे एपिसोड्स सुकून देने वाले हैं और अभिनय ऐसा कि मानो कैनवास पर कोई चित्रकार कूचियों से रंग भर रहा हो। 


Our Readers Comment

1)

यह गांव की कहानी है। एक लड़का जब पढ़ लिख लेता है। जब उसके पास कोई और बहाना नहीं होता घर में रहने का तो उसे घर छोड़ना पड़ता है। चाहे वह कितना गुणी, काबिल, सम्पन्न हो, समाज और परिवार उसे एक पल घर में टिकने नहीं देता। यह मूल रूप से लड़कों के साथ ही अधिक होता है। फिर इसके लिए चाहे ग्रेजुएट लड़के को नगर पालिका कर्मचारी, पोस्ट मैन का फॉर्म भरना पड़े। लड़का भरता है। पंचायत वेब शो में भी एक लड़का, जो बहुत कुछ करना चाहता है, उसे समाज घर बैठने नहीं देता तो ग्राम पंचायत सचिव बनकर गांव पहुंच जाता है। यहां पर उसके अनुभव बड़े मज़ेदार होते हैं। इसलिए कि वह पहली बार गांव गया होता है। अब कोई अचानक शहरी परिवेश से गांव पहुंचेगा तो जीवन बदलेगा ही। इसी बदलाव से हास्य पैदा होता है जो गुदगुदाता है। इसी बदलाव से दुःख सौर असंतोष भी जन्म लेता है। चूंकि टीवीएफ रोचक कंटेंट बनाता है इसलिए शो में प्रेरक तत्व और हास्य तत्व प्रधान है। गांव की बुरी स्थिति को दिखाने से परहेज़ किया गया है।
इसके बाद लड़के की यात्रा, अपने वर्तमान को बदलने की यात्रा शुरू होती है। यही शो को रोचक बनाती है। 

2)

यह सीरीज दिल को छूती है। इसे देखते वक़्त किरदार, किरदार ना होकर क्षण भर के लिए हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं। शहर की भागती दौड़ती जिंदगी से दूर क्षण भर के लिए ही सही, यह सीरीज गाँव की खूबसूरत महक देती है। बाकी अगले सीजन का पूरा इंतजार है। उससे भी ज्यादा इंतज़ार अभिषेक बाबू द्वारा एग्जाम क्लियर करने का है, प्रधान जी की नदान चालाकियों का है, विकास के गुदगुदाते हसिनुमा डायलॉग्स का है, मंजू देवी को असली प्रधान के रूप में देखने का है।

3)

क्या कमाल की सीरीज है। जीतू बाबू के साथ हम भी फुलेरा पहुँच गए. बिकास पहिला ही पांच मिनट में हमारा फवोरिट हो गया. वैसा ही कोई चाहिए अपने लाइफ में भी...हमेशा आप के लिए बैटिंग करने वाला...आपका खून को खौलाने के लिए 'गैस' हाई पे करने वाला...फिर आपके साथ 'घेरा के पिटाने' का संयोग बनने पर भी साथ रहने वाला।

ऐसी वेबसेरीज़ बहुत कम मिलती है देखने जिसकी कहानी साफ सुथरी और एक गांव की सैर कराए। कैसे छोटा छोटा बात का बतंगड़ बनता है गांव में...किस लेवल की गरीबी होती है (वो तेल लेने वाले बाबा फिर दिखे नहीं...शायद नेक्स्ट सीजन)...कैसे कोई अफवाह एक सच्ची कहानी का रूप ले लेती है. किसी हॉलीवुडिया गाली का शुद्ध हिंदी अनुवाद, कितना बड़ा बवाल खड़ा कर सकता है ये किसी 'बेवकूफ आदमी' ने सोचा नहीं होगा।


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