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Photo- Mohan Sanju |
हरियर हरियर चूड़िया पेनहनी बन डलवाई के, बहरा से पियवा अइले अत दुबराई के....
इधर प्रतियोगिता परीक्षाएँ कब से होंगी इसका कोई कलेंडर नहीं, लेकिन पिछला दशहरी मेला में विवाहित सुनीता भौजी जब अँगुरी पर अँगुरी रखकर जोड़-घटाव करती हैं तो पता चलता है कि रोपनी बुध, बीफे से होगा।
कि हो पारवती माय होतै न हो ?
एतवार, सोमार, मंगर, बुध, बीफे...हाँ बहिन दिन तो बैठते हको।
तोहर गुड्डू माय, तोहर रोपनी कब से होतो ? हमरो होबे करते जहिया से नाध दहो सब कोई।
खेतों का मन पानी से भरा हुआ है। न कोई घमंड, न कोई अहंकार। कुछ दिन पहले धरती के गर्भ में छींटा हुआ बीज अब मोरी बनकर तैयार है। कभी आसमान को छूना चाह रहा है तो कभी सुनीता भौजी और पारवती माय जैसी स्त्रियों का सुंदर हाथ।
पछुआ हवा बहती है तो सभी एकदूसरे से गले मिलकर नवजात शिशु की तरह हँसने खिलखिलाने लगते हैं। कभी लगता ये शिशु बेचारे बिहार पुलिस की दौड़ में एक दूसरे के पीछे भाग रहे हों। फिर लगता अचानक किसी ने ये कहकर रोक दिया हो कि बाबू अभी दौड़ कर क्या फायदा ? सरकार ने कोरोना के मौसी के वजह से अगले आदेश तक दौड़ रद्द कर दिया है।
हाय रे जमाना, भगवान जाने कहिया नुक़री लगेगा। दस बाई बारह के कमरा में बीजगणित का बरियार सवाल हल करने वाला गुड्डू, राकेश और मनोहर आज हल और कुदाल लेकर खेतों में योग कर रहा है। कहाँ से आरी काटे कि खेत से पानी निकल जाएगा। कहाँ पर मिट्टी बाँध दे कि पानी रुक जाएगा।
पेड़ों में...जाइलम से जल और फ्लोएम से भोज पदार्थ, पत्ती तक पहुँचाने वाला पंकज, सुनील कोरोना काल में जल निकासी और जल संचयन व्यवस्था पर थीसिस तैयार कर रहा है। भोज पदार्थ में इतना ही कि आज दाल, भात, चोखा और छीनौरी खेत में ही खाया जाएगा।
किसान मजदूरी पर हैं। हल और बैल मजदूरी पर हैं। चाची का एड़ी फट गया तो काका के पैर में पानी लग गया। भला रोपनी भी रुकने का चीज है ? धरती के कोख में फसल उगाते समय आदमी के हाथ पैर भी न फटे, पानी न लगे तो क्या खेती किये ? धरती की पीड़ा के सामने तो मनुष्य कुछ भी नहीं।
लेकिन अब बहुत कुछ बदल गया है। अब भौजी बिना लिपिस्टिक और फेसियल के रोपनी नहीं करती हैं। न ही खुद को गंवार कहलवाना चाहती हैं। न ही अब वो गीत सुनाई पड़ते हैं जिसमें कुछ भी न आने पर कम से कम सिंटू के पापा को याद करते हुए दो कट्ठा रोप दिया जाता था। कि-
हरियर हरियर चूड़िया पेनहनी बन डलवाई के,
बहरा से पियवा अइले अत दुबराई के।
अब तो दु डेग रोपने पर चार बार डाड़ा सोझ करती है। चार डेग रोपने पर मुँह समोसा और जिलेबी खोजने लगता है। खेत पूरा होते होते तो फ्रूटी चाहबे करी।
जय हो।