लग रहा है आत्महत्या नहीं होगा इ बेर, भगवान भी एकदम हहुआ के बरसे हैं। एक तरफ हरेराम चचा अभी दू महीना पहले ही बूँट बेच के छप्पर पर करकट डाले थे, मगर आन्ही में करकट वाला छप्पर उड़िया गया। दूसरी तरफ सुनीता भौजी के टंगना पर पसारल लाल सितारा वाला चमकउआ साड़ी उड़िया के फुलेसर भिया के छप्पर पर अटक गया है, भौजी टेंसन में हैं कि कहीं हेतना महंगा साड़ी में खोंच न लग जाए।
लगातार पानी के संपर्क से गोड़ में फोकहिया हो गया है, लेकिन फिर भी मनोहर चचा कुदाल ले के पुरबारी खेत दने लपके जा रहे हैं, कपार पर काम पसरल है लेकिन पहले रोपनी होगा। काम चालु है। बबितबा को इस्कूल नहीं जाना है, घर में छोटकी चाची के साथ खाना बनाएगी, इधर बड़की चाची, मंझली चाची और संझली चाची के लिए कमण्डल में सतुआ घोरा रहा है, भूखे पेट काम नहीं होगा, गोतनी सब को खेत जाना है रोपनी के लिए।
बाहर पानी फिर से फिसफीसा रहा है, अंबूजा सीमेंट वाला बोरिया को घोघी बनाकर चाची ओढ़े खेत दने लपके जा रही है, इतना लेट अभिये हो गया है, उधर पवनमा के बाबूजी अकेले खेत में खिसिया रहे होंगे, तीनकोनाहे चल ए बहिन शार्ट पड़तौ तबे जल्दी पहुँचमां, अब तक ले तो एका कोना रोप दतिये हल।
पूरा खेत पानी से डबडबा गया है, कन्ने खेत है कन्ने आरी कुछो थाह पता नहीं चल रहा है, पर हमेशा से उसी शॉर्टकट रास्ते से आते जाते रही हैं, तो अंदाज पर पैर रखा रहा है।
साड़ी भर ठेहुना ऊपर उठाए कमर में खोंसे हुए आगे बढ़ रही हैं, कहीं कहीं जमीन गढ्ढा है पैर सड़ाक से अंदर टान ले रहा है, तब तुरंत बड़की चाची कहती है- अच्छा से आईहाँ बहिन, एजा ढेर गड्ढा हौ, अब तीनों गोतनी खेत पहुँचने वाली है, पानी का फिसफिसाना भी कम हो गया है, उधर बड़का चचा को भोरही से रोपनी करते करते बरसात में भी पसेना आ गया है, जिसे सिर्फ बड़की चाची स्पष्ट रूप से महसूसिया रही है।
वैसे भी एक स्त्री अपने पति के चेहरे पर पानी और पसेना में स्पष्ट अंतर ढूंढ ही लेती है, लेकिन इ बेर धान का उत्पादन अच्छा होगा इसी उम्मीद में बड़की चाची को पानी और पसेना दोनों सोना नियुत लौक रहा है। हम गरीब लोग हैं पैसा भले ही कम हो पर दिल बहुतै बड़ा होता है।
इधर बड़का चचा खैनी का मसाला बनाकर गलफड़े में प्लांट कर रहे हैं। उधर बड़की, मंझली और संझली चाची भी खेत में उतर आई हैं, अब चारो चार कोना पे छितराये हुए हैं, फिर से काम चालु है।
आज बबिता इस्कूल नहीं आई है, मन एकदम से बैठा जा रहा है, किताब कॉपी चिंटुआ के झोरा में डाल के, परमोद माटसाब से छोटी संख्या का बहाना बनाते हुए मैं स्कूल से भाग चुका हूँ , रास्ते में बबिता का घर पड़ता है, मैं झाँकने की कोशिश करता हूँ तब तक उसकी छोटकी चाची हमें पीछे से धप्पा मार देती है।
मेरा हृदय कुछ देर के लिए वहीं रुक जाता है, फिर बबिता को देखता हूँ और सब कुछ सामान्य सा हो जाता है, उसकी चाची हमें खेत में खाना पहुंचाने को अराहती है, अगले ही पल मेरे हाथ में दो टिफिनकारी होता है और बबिता के हाथ में पानी से भरा कमण्डल। पोखर के रास्ते दोनों खेत की ओर आगे बढ़ते जा रहे हैं, कभी मेढ़क की टर्र टर्र की आवाज सुनते हुए, कभी बहते पानी की शोर सुनते हुए, तो कभी शांत पानी की खामोशी सुनते हुए, मैं बबिता की ओर देखता हूँ बबिता मेरी और फिर दोनों एक साथ खिलखिला उठते हैं।
अब खेत पहुँच चुका हूँ, रोपनी अभी भी चालु है। मेरे हाथ में टिफिन और बबिता के हाथ में कमण्डल देख कर उसके चाचा चाची खुश हैं। मैं वहीँ चुकमुक से बैठ जाता हूँ।
सब कुछ गौर से देख रहा हूँ, कितना सुंदर दृश्य खिंचा जा रहा है, तीनों चाची के हाथ से टुप टुप के आवाज में रोपनी का होना और साथ में उनकी चूड़ियों का क्रमानुसार खनकना मानों जैसे यही असली जीवन संगीत हो।
मैं बार-बार उसे ही सुनता जा रहा हूँ, उसी में लीन होता जा रहा हूँ। कहानियां लिखने के लिए कोई किताब की जरूरत नहीं बल्कि उसी संगीत को हृदय में समाने की जरूरत है।
अगले ही पल मैं उस खेत में उतरना चाह रहा हूँ, उतरने की कोशिश कर रहा हूँ, पर बबिता मुझे ये कहते हुए मना कर दे रही कि मद कूदो उस गन्दे पानी में। मैं पुनः उसी जीवन संगीत को सुनते हुए हौले से मुस्कुराता हूँ और ये सोचता हूँ कि जीवन साहित्य और जीवन संगीत को समझने के लिए भी एक मानसिक योग्यता की जरूरत होती है। वो बच्ची है अभी, उसे अभी पता नहीं कि वो पानी गंदा नहीं बल्कि गंगा जैसी पवित्र है। ना जाने कितने गांव के चचा और चाचियों के मेहनत का पसेना उसे और भी पवित्र करता जा रहा है।
थोड़े ही देर में, सभी खेत से बाहर खाने की ओर निकलते हैं, बड़की चाची हाथ धोते हुए कहती है, एतना रोपा गया है, शाम तक पूरा रोपा जाएगा, इ बेर भगवान भी खूब बरसे हैं, अबरी आत्महत्या नहीं होगा।
-अभिषेक आर्यन