पुदीना-ए-हसीना और परधानी चुनाव के किस्से
दिल्ली, बम्बई और लुधियाना में कमा रहे गुड्डू, पंकज और मुकेश टाइप के लोग अमूमन दो, तीन बार ही तो घर आते हैं। पहली बार होली, दिवाली या छठ में। दूसरी बार जब पिछला दशहरी मेला में गवना करा के आयी कोई बबिता अपने प्रिय परमेसर को फोन कर के बताती हैं "ए जी सुनिये न...एगो खुशखबरी सुनायें...हम न पेट से हैं" और तीसरी बार जब पता चलता है कि गाँव के पंचायत चुनाव में कोई जगेसर महतो मुखिया प्रत्याशी में खड़े हैं।
तुरंत टिकस कट जाता है। दो, तीन दिनों में वोटों की फ्लाइट कमांडर बल गाँव पहुँच जाती है। आन्दोलनी बहस छिड़ जाती है कि किसका पकड़ अधिक है ? जगेसर बाबू जीत रहें या रूबी देवी ?
बातों ही बातों में पिछले पांच सालों के पाप और पुण्यों की आर्थिक समीक्षा की जाने लगती है। एक स्पेशल बेंच टीम इसकी अध्यक्षता करती है जिसका फोकस बिंदु हर साल की तरह समान होता "हमारा नेता कैसा हो" और एक मुख्य सलाहकार होते जो बतलाते कि....
देखे नहीं थे जगेसर बाबू पैरवी लगवाकर कैसे हमलोग का राशन कार्ड बनवा दिए थे। बेचारा खून पसीना एक कर दिए थे दौड़ते दौड़ते, तब जाकर आज चावल गेंहूँ मिल रहा है और कोई है क्या जो दौड़ता हो हमलोगों के लिए ?
और उ रामजतन दास का भी जमीन का पंचायती कौन करवाया था अपने जगेसर बाबू ही न, वरना सोचिए बेचारा रामजतन हर साल धान गेंहूँ रोपता था और काटकर पुरुषोत्तम बाबू ले जाते थे।
इसी में विपक्षी दल का भी नेता होता जो मल्लिकार्जुन खड़गे की तरह दो मिनट में किसी का भी चरित्र प्रमाण पत्र का पीडीएफ तैयार कर देता और बतलाता अरे ये वही जगेसर न जो आंगनवाड़ी सेविका के साथ हाथापाही करते पाया गया था। बताइये राह चलते उसे छेड़ता था समाज पर ऐसे नेताओं का क्या असर पड़ेगा।
कुलमिलाकर वोट ताला चाभी पर जाएगा या खटिया छाप पर ये किसी को नहीं पता पर इधर देखता हूँ पंचायती चुनाव के भी डिजिटलीकरण दौर शुरू हो गये हैं। प्रत्याशी मैदान में बाद पहले फेसबुक पर उतर रहे हैं। कुर्ता पैजामा, डीएसएलआर फ़ोटो, लाइक कमेंट, स्टेटस, रील और सेरेब्रम को झकझोर देने वाली एक से एक क्रांतिकारी नारे, एक से एक शायरी।
पत्थर पर गुलाब है, हमारा नेता कमाल है। जब नौकरी ना लगे जवानी में, तो कूद पड़ा प्रधानी में। जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। न दही पर न मट्ठा पर, भोट मराई भट्टा पर। पत्थर रख लो छाती पर, बटन दबा दो हाथी पर।
गाँवों में गीतों का चयन बदल चुका है। ले ल पुदीना के अपडेटेड चुनावी वर्जन आ गए हैं, कोई छोटी है जिसके चोटी से अभी भी चोट लग रहा है और एक बेर गंगा नहाइले बानी का महामंत्र जाप है।
यूट्यूब पर चुनाव कैसे जीतें का टोना टोटका सहित थम्बनेल आ गया है। जैसे ही आप वीडियो प्ले करेंगे स्क्रीन के अंदर से कोई आदमी आएगा और आपके हाथ में जंतर पहना जाएगा। सात मिनट का वीडियो है जिसे देखकर पाँच साल के लिए आप जगेसर बाबू या रूबी देवी बन सकते हैं।
पाँच साल फिर बीत जाएंगे। फिर नया इलेक्शन आएगा, नये प्रत्याशी आएंगे, नये नारे, शायरी और नये पुदीना गीत आएंगे पर जो नहीं आ पायेगा वो है विकास। 73 वां संविधान संशोधन पंचायतों को संवैधानिक दर्जा और शक्तियाँ तो दे दी, पर जो नहीं दे सकी वो है मानवीय संरचनाओं का विकास। बहरहाल हमें एक सशक्त मानसिक संशोधन की जरूरत है जहां आदम गोंडवी की बातों को सिर्फ हिंदी की कक्षा में नहीं बल्कि इतिहास और राजनीतिक शास्त्र की कक्षाओं में भी पढ़ाई जाए। कि-
जितने हरामखोर थे कुर्बो-जवार में,
परधान बन के आ गए अगली कतार में
-अभिषेक आर्यन
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