स्मार्ट योजना के बीच खेती किसानी और कंपटिशन


इधर ये हुआ कि छोट भाई ने खेत से ही फोन कर दिया। फोन उठाया तो उधर से माई की आवाज आ रही है।


हमने पूछा "का हाल माई ?"


तो माई कह रही है "रे मनोहर, हफ्ता भर से तो धान के कटनी चल रहलौ हें, आज कटनी खत्म हो जइतौ। कल से डेंगौनी अ फिर ओसियौनी।


मैं माँ को कैसे बताऊँ कि माई जीवन इन दिनों इतिहास के पन्नों में घुल चुका है। 


जिस धान को काटकर, ओसियाकर, कुटवा कर तुम चावल निकालने की बात कर रही हो उसके प्राचीन साक्ष्य प्रयागराज जिले के बेलन नदी के तट पर स्थित कोल्डिहवा से मिला है।

 

माई चुप है। उसे लगता कोल्डिहवा जैसे कोई भैरो बाबा का मंदिर हो। और बेलन के नाम पर इतना ही पता है कि बेलन से रोटियाँ गोल होती हैं।


मैं माई को ये भी कैसे बताऊँ कि माई बेलन से कुछ नहीं होता ये तुम्हारे हाथ की सुंदर कलाकारियाँ हैं। ये आसमान के छत पर जो चाँद गोल पड़ा है इसकी सुंदरता भी तुम्हारे हाथों की बुनावट से ही है। 


इस पृथ्वी पर एक स्त्री ही तो है जो चाँद को चकले पर उतार लाने की क्षमता रखती है वरना टैक्नोलॉजी तो रोवर, लैंडर और ऑर्बिटर में ही उलझा हुआ है।


बाप भी कम नहीं होते, उनमें गुप्त सम्वेदनाएँ होती हैं। जब लगे कि माँ के आँखों में पानी भर आएगी तब फोन अपने हाथ में लेते हुए कहेंगे "कहो मनोहर तबियत पानी सब ठीक?"


गुप्त ऊष्मा का सिद्धांत पढ़ने वाला मनोहर का मन होता कि कहे बाबूजी पानी सामान्य से अधिक पिया कीजिये वरना पथरी आपका तबियत बिगाड़ देगा। फिर हँसुआ से काटा हुआ धान का सारा पैसा डॉक्टर ऑपेरशन करके निकाल ले जाएगा।


बाप भी समझने लगा है कि बेटा जब अपने कद के बराबर आ जाता है तब पहले से ज्यादा समझदार हो जाता है। चुप रहो वरना बिना अल्ट्रासाउंड किये पथरी का साइज निकाल देगा। 


फिर एक चुप्पियाँ होती हैं। वापस फिर से माई के हाथ फोन होता है। हजारों सवाल हैं जो माई पूछना चाहती है, सैकड़ों उत्तर है जो बेटा देना चाहता है। 


पर सब कुछ इन बातों में ही अदृश्य हो जाता कि बेटा थोड़ा दूध बेदाम खाया पिया करो, नहीं होता तो छुहारा ही खरीद लो, चेहरा देखो हो कितना दुबरा गया है। पढ़ना भी तो पड़ता है देश दुनिया को। 


कैसे कहें कि माई तुम्हारी दवाई की थैलियों में बस तीन दिन की खुराक बची है। छोट भाई से मंगवा लेना। हम ठीक हैं। 


कितनी कमाई है कितना खर्च है पढाई, लिखाई, दूध, दवा। पर ये भी क्या बात है कि सरकार के आंकड़ें कागजी हैं। देश भर को धान पैदा करके खिलाने वाला किसान आज अपना अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी नहीं बेच पा रहा है।


किसान भी मजबूर हैं नहीं बेचेंगे तो अगली फसल लगाएंगे कैसे। कैसे यूरिया और पोटाश आएगा। कैसे जिंक और फॉस्फोरस आएगा।


मैं सोच रहा हूँ जिस तरह से सरकार ने सितंबर को पोषण माह, अक्टूबर को स्तन कैंसर जागरूकता माह घोषित किया है उसी तरह नवम्बर को किसानों का माह घोषित कर दिया जाना चाहिए। ताकि कम से कम ये याद रहे कि किसानों ने अपनी फावड़े की चोट से व्यवस्था की हठी जमीन को कोड़ डाला था।


जय हो। 


अभिषेक आर्यन

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