इन दिनों एक गीत वायरल हो रहा है- "एक गंजेड़ी गांजा पी के चिल्लम दिया लहराय.....चिल्लम में से तितकी उड़ के जर गेल तोसक रजाई"
अब तोसक रजाई से सिरी सिरी एक सौ आठ महान चिंतक और मनोविद विकास बेदर्दी याद आते हैं। जिसमें नवविवाहित पत्नी अपने परदेस जा रहे मरद से कह रही हैं- तोसक रजाई से कटे कैसे ए हो अबकी जड़इया, जइता कमाये नाही घरहें रहती मोर ए सइयाँ।
गीत को सुनकर लगता बेदर्दी बाबू का पश्चिमी विक्षोभ और भारतीय मौसम विभाग से कोई व्यपारिक साझेदारी रहा हो। क़ई बार तो ये भी लगता कि माजिद हुसैन से पूछा जाए- मानव भूगोल के संरचनाओं और विकास में आपने दर्द-ए-विकास का विकास क्यों नहीं करवाया ?
पर इस गिरते तापमान ने सारे हसीन प्रश्नों को गुलज़ार बना दिया है। इधर ठंड बढ़ती है उधर भोजपुरी के सूरवीर गायकों से लेकर यूट्यूब के व्यूज में गर्मी।
और गर्मी से मुझे भगत बाबू याद आते हैं। भगत बाबू सुबह सुबह उठते और चिल्लम लेकर चमार टोली चले जाते।
वहाँ एक पीपल का पेड़ होता, बैठने के लिए चार पाँच विकास कम्पनी की ईंट होती, निम्न जाति की एक मंडली होती और बिना जाति वाले एक दो कुत्ते होते।
आज क्या हुआ कि भगत बाबू गंजी पहने और चादर ओढ़कर निकल गए। सुबह कड़ाके की ठंड और शीत लहर को एक गंजी और चादर से चीरते हुए आगे बढ़ना बंगाल की खाड़ी से उठा हुआ तूफान जैसा प्रतीत हो रहा था।
पास आते देख मंडली ने रोज की तरह उनका सत्कार किया। जय श्री राम भगत बाबू जय श्री राम। भगत बाबू अपने नाम के आगे और पीछे जय श्री राम लगा देखकर आत्ममुग्ध होते।
फिर उन्हें लगता नहीं नहीं ये तो सुबह सुबह ईश्वर का अपमान है। अतः इस अपमानजनक घटनाचक्र से बचने के लिए वो अपने नाम के साथ लगे बाद वाले जय श्री राम मंडली को वापस लौटा देते। इस तरह सत्कार की स्वीकृति भी हो जाती और पाप की मुक्ति भी।
तभी खोजा जाता विकास कहाँ है विकास ? अरे कोई विकास लाकर दो भाई अपने भगत बाबू बैठेंगे।
बगल से रामाधीन ने ये कहते हुए एक ईंट बढ़ाया कि हाल बेहाल है हर कोई विकास को ही खोज रहा। आम आदमी पिछले सात साल में विकास खोज रही है और राजनीतिक पार्टी पिछले सत्तर साल में।
लीजिये भगत बाबू बैठिये विकास पर।
थोड़ा थोड़ा सभी लोग घसके और भगत बाबू को स्थान दिया गया। बीच में आग का गोला और गोले के चारों ओर से विकास की ईंट पर बैठे मंडली के लोगों को देखकर दूर से ही अनुमान लगाया जा सकता था कि यहाँ हवन कुंड का विशेष कार्यक्रम चल रहा है।
रामाधीन लाल कपड़े से चिल्लम निकाले और जय भोलेनाथ कहते हुए उसे प्रणाम किया। बगल के भी एक व्यक्ति ने जय भोलेनाथ का भक्तिमय स्वर में उच्चारण किया।
नीलम दीदी और परमेसर भैया के शिवचर्चा के बाद इस तरह के शिष्ट व्यवहार अक्सर इस रूप में चिन्हित किये जाते थे कि सामने वाला भोलेनाथ का परमभक्त है। इस्तेमाल करने से पहले और विश्वास करने के बाद तक उसे काफी पवित्रता के साथ रखा जाता।
अब गांजा तैयार हो गया, चिल्लम भी तैयार हो गया। पर सुलगाये कौन? तो तय हुआ भगत बाबू आप ही सुलगाइये आप सुलगाते हैं तो दो दो बार सबको हो जाता।
जाति कोई भी हो, क्षेत्र कोई भी हो। हिस्सा बराबरी का था। भगत बाबू के नजर में सारी जातियाँ एक थीं। उन्होंने चिल्लम उठाया और फिर से एक बार माथे से टिकाकर प्रणाम किया।
रामाधीन साम्यवाद के आग के गोले से अपनी हिस्सेदारी का एक छोटा सा आग का टुकड़ा उठाया और चिल्लम पर रख दिया। भगत बाबू मुँह से लगाकर साँस खींचे।
कुछ ही सेकंड में आग जल चुकी थी। सुबह की भोर में चिल्लम की लालिमा पूर्वी क्षेत्र से उगता हुआ सूर्य का गोला जैसा प्रतीत हो रहा था।
आज क्या हुआ भगत बाबू लंबा खींचे जा रहे थे। आँखे लाल हो चुकी थी। शरीर उससे भी अधिक लाल और माहौल सबसे अधिक लाल। भगत बाबू लाल रंग में क्रांति देख रहे थे और मंडली के लोग भगत बाबू में क्रांति।
चिल्लम के प्रति इस संवेदना और समर्पण देखकर एक बार तो लगता भगत बाबू के शरीर में दाएं हिस्से से शिव जी घुस कर बाएं हिस्से से निकल गए हों।
मंडली के लोगों ने जानना चाहा। क्या भगत बाबू आज कुछ लंबा नहीं खींच लिये? तो ये बतातें कि रामाधीन ! जब चिल्लम लाल हुआ जा रहा था तो मैं देख रहा था कि इसी चिल्लम में से तितकी उठकर बाबू जी के धोती में आग पकड़ लिया है।
धीरे धीरे आग आगे बढ़ रही है। धोती, तोसक, रजाई, खटिया, छप्पर समेत उनके कुकर्म भी जल रहे हैं। वो फाइलें भी जल रही हैं जिसपर नकली अँगूठा लेकर पंडितजी ने रामाधीन जैसे लोगों के खेतों के कीमत लूटे।
जिसकी उर्वरकता को अपना जागीरदार बनाया। वो धान, सरसों, गेंहूँ सब जल रहे हैं।
पंडित जी भगत बाबू के बाबू जी थे। और भगत बाबू के चिल्लम से धोती में लगे इस आग ने अचानक पंडितजी की निंद्रा तोड़ दी थी। उठते के साथ धोती देखते हैं। धोती की इज्ज़त के साथ बलात्कार हुआ जैसा तो कुछ नहीं था। पर सब कुछ खत्म कर देने वाला एक डर इनके भीतर प्रवेश कर चुका था।
हाँफते हुए बक्से में से रामाधीन के खेत की फाइलें निकालकर देखते हैं। विद्यालय निर्माण के घपलेबाजी से अर्जित पैसों और कागजातों को देखते हैं। सब सुरक्षित है। पर सुबह सुबह इस तरह का स्वप्न दुराचारी भाव से कमाये प्रतिष्ठा को और भी खतरे में डाल रही थी।
पंडितजी लाठी लेते हैं और भगत बाबू को खोजने चमार टोली चले जाते हैं। वहाँ पीपल के पेड़ के पास पहुँचकर देखते हैं मंडली का कोई भी व्यक्ति उपस्थित नहीं है पर आग सचमुच जल रही है।
उन्हें फिर से भय होता है। फिर से अपनी धोती देखते हैं फिर से आग और फिर से धोती के इज्जत में आग की चिंगारी।
इससे पहले कि पंडितजी को कोई चमार टोली में देख ले और उनके पण्डितई के नियमों का हनन होने लगे पंडितजी ने वहाँ से निकलना चाहा। क्या कहेगा कोई, बेटा तो गंजेड़ी है ही, निम्न जातियों में घुसा रहता है। पर आज बाप भी।
वापस लौट रहे थे कि सामने से शैलेन्द्र मिसिर साइकिल से आते दिखे। उन्हें रुकवाया और पूछा का हो शैलेन्द्र मिसिर का हाल है?
बस चल रहा पंडीजी। सब आपकी माया है। अपना कहिये।
क्या कहें। आज तो ऐसा लग रहा है कि किसी ने धोती में आग लगा दिया हो। समझो किसी तरह जान बचाकर भागे हैं।
"जान बचाकर भागना" इस देश के प्रतिष्ठित नेता से इसका कोई सम्बंध नहीं है पर ऐसे समय में ये कथन विडंबना का रूप जरूर ले चुकी है।
तभी रामाधीन उधर से भागे भागे आते हैं और हाँफते हुए कहते हैं पंडीजी पंडीजी आपके घर में आ लग गया है।
अरे राम अरे राम...क्या कहते हो जी।
पंडित जी शैलेन्द्र मिसिर की साइकिल के करियर पर धान के बोझा की तरह बैठ गये। और शैलेन्द्र मिसिर उन्हें अग्नि स्थल तक खींचते रहे। आज शैलेन्द्र मिसिर बोझ के साथ पंडितजी की खाल भी खींच रहे थे।
कहे थे पंडित, पंडित जवाहर न बनो कुछ हिस्सा हमें भी दो स्कूल निर्माण के पैसे से। पर तुम तो एकदमे हरपट लिये। लो अब जौन पैसा में आग ही लग जाये उ पैसा कौन काम का।
और आखिर अभी जरूरत पड़ी तो शैलेन्द्र मिसिर का ही साइकिल काम आया न।
आया कोई और बिरादरी वाला? बोलो?
पंडितजी सुनते रहे और हाँ में हाँ मिलाते रहे। शैलेन्द्र उनकी खाल उतारते रहे। वहाँ पहुँचने तक सारे कागजात और फाइलें जल चुकी थी। पंडितजी भी भीतर से जल रहे थे। आसापास सब कुछ गर्म हो चुका था।
पर इसी ठंड की गर्माहट ने रामाधीन को उनके खेत वापस दिला दिये थे।उसी शाम देखता हूँ रामाधीन की पत्नी और उसकी बेटी सालों बाद अपने खेत से घास काट कर वापस लौट रही हैं। एक कहावत याद आ रहा है कि घास काटने का सुख अपने खेत में है और साग तोड़ने का सुख दूसरे के खेत में।
घनघोर नशेड़ीपन और मादक पदार्थ अपनी जगह पर सच्चाई का नशा देखकर लगता कल फिर एक ऐसी सुबह आएगी, जहाँ बुराइयाँ आज की तरह ही जल रही होगी और सुख के पेड़ों में फूल खिल रहे होंगे।
जय हो।
अभिषेक आर्यन
Suggested Keyword:-
Indian village story, urban photography, novel based on munshi premchand, nayi wali story, abhishekaryan story blog, nai love desi story, dehati story, satire story, raagdarbari, Moral story moral story in hindi moral story in english moral story for kids moral story in hindi for kids moral story on discipline moral story for kids in english मोरल स्टोरी moral story in english for class 7 moral story about friendship moral story about telling lies moral story about discipline moral story about honesty moral story about education moral story a glass of milk moral story app moral story about responsibility moral story books moral story books in english moral story books pdf moral story books for adults moral story books pdf free download moral story books in english pdf moral story book in hindi pdf moral story believe in yourself moral story cartoon moral story chart moral story class 8 moral story comic moral story class 5 moral story class 6 moral story class 1 moral story class 7 moral story drawing moral story download moral story drama moral story don't give up moral stories discipline moral story drama script moral story dikhaiye moral story don't tell lies moral story english moral story easy moral story english writing moral story