राम बाबू बिल्कुल राम ही थे। हर जगह मर्यादा और लोकप्रचलित शिष्ट व्यवहार में पेश आते। पर आज रात पता नहीं व्यवहार को क्या हुआ था उनके सपने में एक लड़की आ गयी।
हल्की गोरी, बदन स्वस्थ, भरी भरी दिखने वाली। आ कर उनके करीब बैठ गयी। राम बाबू ने देखा वो लड़की इनके सीने पर हाथ रखकर उंगलियाँ सहला रही है।
उंगलियों के कोमल स्पर्श पर राम बाबू के मन में जादुई अनुदैर्ध्य तरंग की लहरें दौड़ गयी। जैसे चाँद की रौशनी में फूल की बारिशें हो रही हो।
होठ काँप रहे हो, हृदय की गति बढ़ रही हो और अज्ञात लड़की ने उन्हें बाबू कहते हुए चूमने का प्रयास किया हो।
फिर क्या ये बात एक दिन वो अपने परम मित्र फेकन महतो को बता दिए। कहावतों के अनुसार जैसा उनका नाम था वैसा ही हुआ। अब बात बात नहीं रही। पूरब, पछिम, उत्तर, दखिन हर जगह यह बात प्रश्नवाचक रसकाव्य की तरह फैल गयी।
जहाँ जाते वहीं चार लोग घिघियाते हुए पूछ बैठते राम बाबू राम बाबू हें हें हें.....वो कन्या जो उस रात आपके सपने में आयी थी उसका नाम क्या था ? बता देते तो......
तो कोई कह बैठता सुने हैं राम बाबू आपके सपने में एक लड़की आयी और आपको बाबू कहते हुए चूमने का प्रयास किया।
चूमने का प्रयास और उसके प्रतिफल उस लड़की के नाम की तरह ही अज्ञात रहा। कुछ ज्ञात रहा तो बस उसका बाबू कहना और उस दिन से राम राम नहीं रहे, राम बाबू कहे जाने लगे।
कभी अखंड सिंगलों की झुंड लगती तो राम बाबू उसके सेनापति और सिपहसालार नियुक्त होते।
ये जमाना सिर्फ रसायन विज्ञान के बंध तक ही सीमित नहीं था। ये पाठ्यक्रम से बाहर निकलकर मानव के किसी अंग विशेष का दर्द जैसे घाव और फुंसी में तब्दील हो रहा था।
पीड़ाप्रद भाव से जिक्र होता कि ससुर डबल बांड और ट्रिपल बांड के जमाने में भी जीवन सिंगल बांड में कटी जा रही। बताओ इतना दुख।
वो देखो रघुनाथ जादो की तीन बेटी है।
पिछला दशहरी मेला में बीच वाली भेंटाई थी। रघुआ के चूड़ी दुकान पर उसका दुप्पटा हाथ में लेते हुए बोले थे...एक्सकूज मी मायडम, प्लीज गीभ मी योर भाटसप नम्मर।
उधर से बोली- का रे एकदम भकचोंहरे हो का। ऐसे बीच रास्ता में किसी लड़की का दुपट्टा खींचा जाता है।
खींच कहाँ रहे हैं, बता रहे हैं कि हम तुमसे प्यार करते हैं।
इस प्यार का परवान ऐसा चढ़ा कि अगले दिन राम बाबू के घर दरोगा विश्वनाथ पांडेय पहुँच गये।
गाँव ज्वार हर जगह शोर हो गया।
पता चला आजकल लड़कियों के दुपट्टे में अपना नम्बर फँसाते हो।
नय सर, वो तो बस हम उससे प्यार करते हैं। तो.....
फिर क्या दरोगा विश्वनाथ मरुत की तरह रामबाबू पर टूटते रहे। आँधी तूफान जैसा माहौल हो गया। रामबाबू दरोगा विश्वनाथ के पैर पकड़कर रघुनाथ, प्रभुनाथ, आदिनाथ, ऋतुनाथ, शेषनाथ, पार्श्वनाथ...…...दुहराते रहे और अंत में हे विश्वनाथ पर रुके।
इस घटना के बाद से लगा कि रामबाबू से बेहतर है राम बने रहना और बाबू से बेहतर है बाबूनाथ बने रहना। पर, वो गीत है न। प्यार बिना चैन कहाँ रे.....
इसी गीत के साथ रामबाबू का फोन घनघनाया। लगा फिर से कहीं दरोगा विश्वनाथ ही तो नहीं। फिर से हिंदी के सारे नाथ एक लय में दुहराये..... रघुनाथ, प्रभुनाथ, ऋतुनाथ, शेषनाथ, पार्श्वनाथ......हे विश्वनाथ और अंत में फोन उठाये।
किसी लड़की की आवाज थी- राम बाबू बोल रहे हैं?
नहीं हम राम बोल रहे हैं।
सुधर गये राम बाबू। पर हमें बिगाड़ गये। दरअसल आप उस दिन दुपट्टे में नम्बर फँसाये थे तो कॉल मिला लिये।
पर सुनिये कल रात आप मेरे सपने में आये थे। बाहर तेज बारिश हो रही थी, ठंडी हवा बदन को छू रही थी और आप मेरे होठों पर होंठ रखकर चूमने.......
उस रात के बाद से आज फिर किसी लड़की ने इन्हें बाबू बुलाया था। फिर से वही घटनाओं की पुनरावृत्ति। ये संयोग था या कुछ और नहीं पता। पर ये सब सुनते हुए रामबाबू फोन पर ही मौन हो गये, आँखें भरी रही, गला सूखता रहा और मन ही मन दुहराते रहे.... रघुनाथ, प्रभुनाथ, ऋतुनाथ, शेषनाथ, पार्श्वनाथ......हे विश्वनाथ और सबसे अंत में जोड़ गए हे प्रियनाथ।
इतना कहते ही बिजली जोर से कड़की, दोनों सहम से गये, फोन बंद हुआ और तेज बारिश की बूँदे दोनों के भाव बहा गये, शायद भाव का काम है बह जाना। प्रेम तो उस नाव की तरह है कोई डूब गया कोई उबर गया।
Abhishek Aryan