एक तो कड़ाके की ठंड। ऊपर से आज बैठे बैठे विशनाथ बाबू के आँखों में आँसू भरे जा रहे थे। वे बार बार जोर लगाते और मन ही मन गाल पर हाथ रखकर सोचते काश कल रात आधा बाल्टी सब्जी, अड़तीस पूड़ी, साढ़े पान सौ ग्राम बुनिया और एकावन रसगुल्ला न खाए होते तो आज सुबह एक क्रांतिकारी आंदोलन से नहीं गुजरना पड़ता।
लेकिन मानव मन कहाँ मानता है। जे मन चंचल जे मन चोर, जैसा विशनाथ खाने वाले वैसा दीनानाथ खिलाने वाले।
तेज हवा चलती तो विशनाथ बाबू का पश्च भाग ठिठुर कर अंटार्कटिक हो जाता। एक बार तो खुद में ही विवेचना कर लिए कि मानो हवा पश्च भाग के माध्यम से प्रवेश करके छोटी आँत और बड़ी आँत के संवेदनशील परत को छू रही हो।
बात यहीं तक नहीं रही। जैसे ही घर पहुँचकर हाथ मुँह धोकर खटिया पर बैठे तो पेट से एक व्यंग्यात्मक अतिशय चमत्कारजनक गुड़गुड़ाहट की आवाज सुनाई पड़ी।
विशनाथ बाबू मंद गति वाली भूकंप की तरह डोल गए। लगभग एक मिनट सात सेकंड बाद अपने आप को स्थिर अवस्था मे पाए और सोचते रहे जिस तरह सड़क किनारे बोर्ड लगा होता है "धीरे चलें आगे तीखा मोड़ है" उसी तरह मन और भूख के अभाषी पटल पर ऐसा कोई बोर्ड क्यों नहीं लगा होता जो खेद जताते हुए कहे "विशनाथ बाबू थोड़ा धीमा चलें, सुबह एक क्रांतिकारी आंदोलन से भिड़ना पड़ सकता है।"
बड़ी मुसीबत है। किससे बताएं अपनी गुड़गुड़ाहट की असुविधा।
बात पड़ोस के रंगनाथ तक पहुंच गई। रंगनाथ ने तात्कालिक उपचार का उपदेश देते हुए और कायम चूर्ण के औषधीय गुण बताते हुए उनके हाथ पर एक पुड़िया रखा और कहा इसे सुबह शाम गर्म पानी के साथ लेना है विशनाथ बाबू।
लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि आप इससे ठीक ही हो जाएंगे। हम तो कहते हैं आज मंगल है और कल बुध। शिवपालगंज वाली बस स्टैंड के किनारे बुधवार और शुक्रवार को बैठने वाली हकीम एम हसन से एक बार इलाज करा ही लेनी चाहिए।
अच्छा ठीक है रंगनाथ तुम कहते हो तो इलाज करा ही लेते हैं। नहीं तो भगवान न जाने कल को कुछ ऐसा हो गया तो पूरा गाँव टोला क्या कहेगा कि अड़तीस पूड़ी, एकावन रसगुल्ला और......खाने के बाद विशनाथ बाबू अब नहीं रहें।
बात तय हो गई। अगले दिन दोनों डॉ हकीम एम हसन के क्लिकनिक पर नजर आए। यूँ तो हकीम मंगल और बुध को नहीं मानता पर आज उसे लग रहा था सच में कुछ मंगल होने जा रहा है।
जहाँ घनी आबादी वाले हर एक इलाके में हर एक किलोमीटर पर हर एक दीवार पर हर एक बुधवार और शुक्रवार को "फलाना कमजोरी......मिलें हकीम एम हसन" से लिखा हो और उसके बाद भी दिन के सिर्फ दो या चार मरीज ही हकीम को मिले तो ये किसी के लिए भी बुध मंगल हो सकता है।
वो दिन दूर नहीं जब क्रिकेट स्टेडियमों और फुटबाल स्टेडियमों में byjus, unacademy और रिलायंस जियो के ठीक बगल में लिखा होगा मर्दाना कमजोरी, शेर जैसी ताकत और खूनी बबासीर मिले हकीम एम हसन से।
इधर मिलने की इस क्रिया में डॉ हकीम विशनाथ को उल्टा लिटाकर उसके पश्च भाग से मिल रहे थे। एक दो बार हकीम ने रास्ते को उंगली से छूकर कुछ अनुमान भी लगाया, टॉर्च को और नजदीक लाकर कुछ सर्वेक्षण भी किया फिर बत्ती बुझाकर बाहर आ गए।
बीच बीच में मरीजे विशनाथ कुहकते भी रहे और सोचते रहे राम राम ये क्या हो रहा मेरा साथ....पूड़ी सब्जी बुनिया और रसगुल्ला खाने का ये परिणाम। ओह अत्यंत दुखद।
हकीम ने खुराक पद्धति को समझाते हुए कुछ दवाइयां दी और साथ में पूरे पाँच सौ का बिल भी। और कहा भी कि गर्म चीज और मसालों से बचें खूनी बबासीर का भी अनुमान है।
लौटते समय विशनाथ ने रंगनाथ से कहा बताओ साला कोई पश्चभाग के रास्ते में उंगली डाल कर इस तरह सर्वेक्षण करता है भला। रंगनाथ हँस पड़े। बोले विशनाथ बाबू कोलोनोस्कोपी का नाम सुने हैं उसमें तो पूरा कैमरा ही अंदर डाल दिया जाता।
अब विशनाथ का मुँह देखने लायक था। उन्होंने रंगनाथ का धन्यवाद किया और कहा अच्छा किये तुम जो मुझे किसी अंग्रेजी डॉक्टर के पास न ले जाकर हकीम के पास ले गये। नहीं तो साला आज पूरा कैमरा ही भीतर डाल दिया जाता......
फिर दोनों हँस पड़े।
एक हँसती शाम कल को कैसा दिन लाएगी ये कोई नहीं जानता। रात जब विशनाथ सोये तो फिर कभी नहीं उठे।
बात पूरी गाँव में फैल गई। इसमें कसूर किसका था उम्र का, अड़तीस पूड़ी एकावन रसगुल्ला संग अपच और बबासीर का, उस हकीम का या फिर रंगनाथ का ये कोई नहीं जानता पर।
अंत में जब रंगनाथ ने पर्ची देखी तो दवाई के अलावा एडवाइस में लिखा था " हमने अपने अनुसार दवा दे दी है, आपको सिर्फ भगवान ही बचा सकते हैं।"
इस न बचा सकने की क्रिया के साथ उस गाँव के समाचार पत्र सम्पादकों को नया हेडलाइन मिल गया जिसमें लिखा था शिवपालगंज में आधा बाल्टी सब्जी, अड़तीस पूड़ी, साढ़े पान सौ ग्राम बुनिया और एकावन रसगुल्ला खाकर एक व्यक्ति की हुई मौत।
और लोग इस पर हँसे जा रहे थे।
अभिषेक आर्यन