अरविंद और मनोरमा की अनोखी प्रेम कहानी : Romantic Love Story

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अरविंद और मनोरमा की अनोखी प्रेम कहानी (romantic love story in hindi)

भले ही प्रेम के सारे ज्ञानपीठ और पद्म पुरस्कार चमचई की तराजू पर तौल कर हीर-रांझा, लैला-मजनू या सिंरी-फरहाद को दे दिए जाँय,पर आरा में बहने वाली हवाएँ आज भी चीख चीख कर कहती हैं कि प्रेम किया तो सिर्फ अरविंद सिंह ने किया। अरविंद सिंह के प्रेम के आगे दूसरे प्रेमियों का प्रेम, 'प्रेम' न हो कर 'प्रेमुली' जैसा लगता है। वेलन्टाइन सप्ताह प्रारम्भ होते ही जैसे आरा की फ़ज़ा में अरविंद और मनोरमा की महक भर जाती है।

असल में आरा शहर को वेलन्टाइन का मतलब ही अरविंद ने बताया था, वरना उसके पहले तो आरा के लोग "उधर जुल्फों में कंघी हो रही है ख़म निकलता है" टाइप देहाती प्रेम करते थे।

आरा के रहरिया इंटर कॉलेज के सचिवालय(ई बिहार है भैया) के पिछवाड़े की दीवाल आज भी उन स्वर्णिम पलों की गवाह है, जब अरविंद सिंह ने मनोरमा त्यागी के सामने अपने कलेजे का कोफ्ता बना कर परोस दिया था।

यह उन दिनों की बात है जब अरविंद के लिए जीवन का मतलब ही मनोरमा होता था, और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काफिरों के कत्लेआम से प्राप्त होने वाला बहत्तर हुरीय जन्नत उन्हें मनोरमा के सैंडलों में ही दिख जाता था। सौभाग्य से मनोरमा का सानिध्य तो अरविंद सिंह को आसानी से प्राप्त हो जाता था, पर उन्हें प्रणय निवेदन(सॉरी सॉरी प्रेम निवेदन) करना नहीं आता था। कई बार अरविंद के हृदय में ऐसे भाव आते कि अपने कलेजे को रामपुरी छुरी से पीस काट के सीक में खोंस कर झउँस दें, और नमक छिड़क के मनोरमा को दे के कहें- "खा लो न डार्लिंग, एक पीस भी खा लोगी तो मुझे लगेगा जैसे मेरे कलेजे का पिंडदान हो गया, मैं तर जाऊंगा...जिस प्रकार गंगा में हड्डी का एक टुकड़ा गिर जाने से प्रेत को युगों युगों के लिए स्वर्ग मिल जाता है, उसी प्रकार मेरे कलेजे का एक टुकड़ा यदि तुम्हारे पेट में चला जाय तो मैं समझूँगा कि मुझे स्वर्ग मिल गया। तुम्हारा लिबर ही मेरे लिए गंगा जमुना है डार्लिंग, भले लूज मोस..."

पर ये सब बातें कल्पना मात्र थीं। बार बार चाह कर भी वे इसे सत्य नहीं बना पाते थे।

इन्ही दिनों उम्मीद की किरण बन कर आया वेलेंटाइन सप्ताह, जब अरविंद सिंह ने मन ही मन यह ठान लिया कि अब चाहे जो हो पर मनोरमा को हाले दिल सुना कर ही रहेंगे। उन्होंने सोचा, मनोरमा भी मेरे प्यार को समझेगी क्यों नही! जब राजेन्द्र यादव "हंस" को "सरस सलिल" की ऊंचाई पर ला कर भी उसको साहित्यिक पत्रिका के रूप में स्वीकार करा सकते हैं, जब सिर्फ छू कर केंसर जैसी बीमारी को ख़त्म करने के दावे कर धर्मपरिवर्तन कराने वाले पॉल दिनाकरन ईसाइयत को भारत में बैज्ञानिक धर्म के रूप में स्वीकार करा सकते हैं, या जब उच्च पदों पर सिर्फ ब्राम्हणो को रखने वाली पार्टियां खुद को दलित मसीहा के रूप में स्वीकार करा सकती हैं, तो मनोरमा अरविंद के प्यार को क्यों स्वीकार नही करेगी? उत्साह से लबरेज अरविंद ने रोज डे के दिन मनोरमा को गुलाब दे कर हाले दिल सुना देने कि कसम खा ली...

अरविंद सिंह ने अपने जीवन में कभी भी खिचड़ी, फगुआ और सतुआन के अतिरिक्त चौथे दिन पानी का स्पर्श तक नही किया था, पर उस दिन जब उन्होंने सुबह के साढ़े पाँच बजे ही लाई-बोआई साबुन से नहा कर पूजा घर में "अम्बे तू है जगदम्बे काली" शुरू किया तो घर के सारे सदस्य एक दूसरे के मुँह पर पानी का छीटा मारने लगे कि कोई बेहोश न हो। और जब गाते-गाते वे "तेरे भक्त जनों पर माता भीर पड़ी है भारी" पर पहुचे, तो घर के सदस्य क्या द्वार पर बंधे बैल की आँखों से भी आंसू निकल आये...

पूजा के बाद जल्दी जल्दी कॉलेज पहुँच कर मनोरमा को खोजने लगे अरविंद सिंह... सबसे छुपा कर हजार काँटों के बीच से तोड़ा गया गुलाब पाकिस्तानी हिन्दुओं की तरह छटपटा रहा था, पर मनोरमा कहीं दिखाई नही दे रही थी। बहुत खोजबीन के बादपता चला कि मनोरमा शौचालय की ओर हैं। पुरे पौन घंटे इंतजार के बाद जब मनोरमा शौचालय से निकली तो अरविंद सिंह ने ' किसी मुखिया से मुखातिब एक बिरधा पिनसिम के आवेदक की तरह' मोलायम स्वर में कहा, "ए मनोरमा जी, तनी हेने आइए ना।"

मनोरमा ने अरविंद को ऐसे देखा खा जाएगी, पर जाने क्या सोच कर वह शौचालय के पीछे जाने को तैयार हो गयी। इस तरह शौचालय के पीछे जा कर उस अद्भुत गंध से गमकती फिजा में जब उन्होंने मिथुन चकरबर्ती के इस्टाइल में अपनी जेब से गुलाब निकाला, तो गुलाब के साथ साथ जेब से फुलकोनाजोल टेबलेट का पत्ता और स्कराइब लोशन की सीसी भी निकल कर गिर पड़ी। इधर मन ही मन 

"चंदनचर्चितनीलकलेवरपीतबसनबनमाली
केलिचलनमड़ीकुण्डनमंडितगंडयुगस्मितशाली"
पढ़ते अरविंद सिंह मनोरमा को गुलाब दे रहे थे, उधर मनोरमा की नजरें जमीन पर गिरी दवाइयों पर रुकी थी। मनोरमा ने फूल को नजरअंदाज कर कहा- यह क्या है?

अरविंद शरमाते हुए बोले, "कुछ नहीं! वो इधर छह-सात महीने से खजुअट हो गया था, बस उसी की दवाई थी। आप वो छोड़िये, बस यह जानिए कि यदि आपने मेरे दिल को अपना सेंडल भी बना लिया तो..."

बात को अनसुना करते हुए गरजी मनोरमा, "सच सच बताइयेगा, आपका खजुअट पकहवा है?"
- हें हें हें हें पकहवा कलकल होने से क्या होता है मनोरमा जी, मेरा दिल एकदम छिहत्तर कैरेट के सोना की तरह साफ और चमकदार है।
-अबे चुप! तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे फूल देने की खजुअटाह लंगूर... मार मार के तेरा भुर्ता बना दूंगी।
- खजुअट को छोडो डार्लिंग, मेरे दिल में भरा परेम देखिए....
-अबे हट्ट.. अपने दिल को ले जा कर उसपे जालिम लोशन लगाओ कि उसका खजुअट दूर हो। और अगर दुबारा मुझे डार्लिंग कहा तो सर पर इतने सेंडल गिरेंगे कि समझ नही पाओगे कि सर पर सेंडल है या सेंडल पर सर है।

मुँह पर गुलाब फेंक कर मनोरमा के चले जाने के डेढ़ घंटे बाद तक शौचालय की दीवाल से लिपट कर इतना रोये अरबिंद सिंह कि उस दिन वह दीवाल अमर हो गयी, पर डेढ़ घंटे बाद एकाएक नजारा बदल गया। अचानक अरविंद सिंह के मन में यह बात आई कि रोज डे के दिन भले उसने मेरा गुलाब स्वीकार नहीं किया, पर मुझे तो गुलाब मार गयी। सटाक से उन्होंने गिरे हुए फूल को उठा कर कलेजे में चिपका लिया और जोर से चिल्ला उठे- आई लभ यु मनु! कुछ भी हो जाय, अब तुम हो तो मैं हूँ और यह दुनिया है...

तब से अब तक अरविंद की प्रेम कहानी में जाने कितने अध्याय जुड़े, पर वह गुलाब का फूल अबतक कालिदास के कुमारसंभवम् के पन्नों के बीच में छिपा कर रखें हैं अरविंद सिंह। जब भी उन्हें मनोरमा की याद आती है तो वे उस फूल को सूंघ कर ऐसे महक उठते हैं जैसे गठबंधन के बाद एक पार्टी दूसरी के लिए महक उठती है। 

आज आरा की धरती एक बारफिर उसी गुलाब की खुशबु से महक उठी है।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
(बेस्टसेलर उपन्यास परत के लेखक)Love letter kaise likhte hai hindi me love letter love letter ideas best love letter for gf how to write love letters in hindi love letter in hindi for girlfriend propose love letter photo how to write love letter in hindi unrequited love love letter for valentine day l लव लेटर हिंदी में लिखा हुआ
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