वो औरत बहुत दुखी हुई थी

औरत बनने का गुण : औरतों पर हिंदी कविता ( hindi poem on women )

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औरत बनने का गुण : best hindi poem on women 

वो औरत बहुत दुखी हुई थी
हाँ औरत तीन महीने पहले
अपने घर की लड़की थी
"अपने घर" हाँ अपना ही
तो घर है और सांस के अंत
तक वो अपना ही घर कहेगी...!


सब के साथ मेले में वो यानी
उस घर की बहू, अपने ननद
के साथ गई थी
सब कितने कुछ खरीद रहे थे
वो अपने छोटे से पर्स में
नैहर के कुछ रुपये थे
पति ने आने-जाने का 
भारा का पैसा ननद के
हाथ में दिये क्योंकि वो
इतना "समझदार नहीं कि
इतने पैसे रख सके.....!


वो औरत अपने सहेजे पैसे
से ननद को क्लिप, बिंदी
गले का हार खरीद दी
वो सन्तुष्ट थी
सब के कहने पर तुम
भी कुछ ले लो
उसने प्यार से लछमी-गणेश जी
की चीनी मिट्टी की मूर्ति उठा ली
सब हँसे उस पर
पता नहीं ननद की आंख देख
वो भयभीत हो गई....!


उसने बहुत सम्भाल कर मूर्ति 
घर लाई खुश थी वो
सास के पास ननद ने समान
रखते हुये बोली
"सैयां के कौड़ी भैया के नाम"
ये बात उसके समझ से बाहर था
सास देख खुश हुई .....!


जब उसने खुश होकर लझमी गणेश
की मूर्ति दिखाई तो 
सास ने गाली से तार कर दी
"अभी से घर अलग करे के चाह तारू
पैसा अपन बाप दादा के यहां से लाइले बारू
यही संस्कार मतारी सिखाइले बा
अइसन अइसन पूतोह के 
मार के गंगा जी मे दहा देवे के"


वो औरत डर से सिमट जाती है
खुद में सोचती रही कहां गलती हो गई
रात के अंधेरे में लझमी गणेश जी
को वो धीरे से सहला कर आँचल में भर ली
जैसे बचपन मे अपने गुड्डे गुड्डी को
फ्रॉक में सम्भाल कर रखती थी
तीन माह पहले की लड़की
दुबककर औरत बनने की 
कोशिश करने लगी....!


आज भी लझमी गणेश की
वही मूर्ती बहुत प्रिय है
ना वो दहाई गई ना उसने
लझमी-गणेशजी को दहाई
हर लड़की को पहले से ही
औरत बनने का गुण आना चाहिए।


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प्रीति श्रीवास्तव







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